Muharram Mein Dhol bajana kaisa Hai | मुहर्रम में ढोल बजाना कैसा है

अस्सलामु अलैकुम मेरे प्यारे अजिज भइओ बहनो आज हम आप लोगो को बताएंगे कि मुहर्रम में ढोल बजाना कैसा है | इस आर्टिकल को आखिरी तक पढ़े ताकि आप इन चीजों से बच सकें |

असीराने करबला और शोहदाए करबला के सरों को’ लेकर जब यजीदी लशकर दमिश्क पहुंचे ! और यजीद को इल्म हुआ तो उसने तमाम शहर सजवाने ! और अहले शहर को खुशियां मनाने और घर से बाहर आकर तमाशा देखने का हुक्म दिया !

यजीदी खुशियां मनाने लगे ! एक सहाबी”-ए-रसूल हज़रत सहल रजियल्लाहु तआला अन्हु तिजारत के लिये शाम आये हुए थे ! वह दमिश्क के करीब एक कस्बे से गुजरे ! तो आपने देखा कि तमाम लोग खुशी करते ढोल और बाजे बजाते हैं !

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उन्होंने एक शख्स से इस खुशी मनाने की वजह पूछी तो लोगों ने बताया कि अहले ईराक ने सरे हुसैन यजीद को हदिया भेजा है ! तमाम अहले शाम इसकी खुशी मना रहे हैं !

हज़रत सहल ने एक आह भरी ! ओंर पूछा कि सरे हुसैन कौन से दरवाजे से लायेंगे ? कहा वाबुस्साअ: से ! आप उसकी तरफ़ दौड़े ! और बडी दौड धूप के बाद अइले बैत तक पहुंच गये !

आपने देखा कि एक सर मुशाबा सरे रसूल (यानी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की तरह) नेजे पर चढा है ! जिसे देखकर आप बे इख़्तेयार रो पड़े !

मुहर्रम में ढोल

अहले बैत में से एक ने पूछा कि तुम हम पर क्यो रो रहे हो ? उन्होंने पूछा आपका नाम क्या है ? फ़रमाया: मेरा नाम सकीना बिन्त हुसेन है !

उन्होंने फ़रमाया मैं आपके नाना का सहाबी हूँ । मेरे लायक जो खिदमत हो फ़रमाइये ! फ़रमाया मेरे वालिद के सरे अनवर को सबसे आगे करा दो ! ताकि लोग उधर मुतवज्जह हो जायें और हम से दूर रहे !

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उन्होंने चार सौ दिरहम देकर सरे अनवर मसतूरात से दूर कराया । ( तज़किरा सफा 107 )

सबक : मुहर्रम में ढोल बजाना यजीदियों की सुन्नत है ! लिहाज़ा हमें चाहिए की ज्यादा से ज्यादा इबादत करे , नियाज़ नज़र करे फातिहा ख्वानी करे ! खिचड़ा या लंगर बनाकर तकसीम करे ! शरबत पिलाये ! और ज्यादा से ज्यादा शहीदाने कर्बला पर दुरूदो सलाम का नज़राना पेश करे ! कसरत से नमाज़ पढ़े !

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