Kufa Ka Safar | कूफ़ा का सफर

अस्सलामु अलैकुम नाज़रीन हज़रत इमाम मुस्लिम रजियल्लाहु तआला अन्हु को कूफ़ा ( kufa) में जिस रोज शहीद किया गया ! उसी रोज़ हज़रत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु मक्का मोअज्जमा से कूफा को रवाना हो पड़े !

आपके अहले बैत, मवाली और खुद्दाम कुल 82 लोग आपके साथ थे ! यह मुख्तसर सा अहले बैत का काफिला मक्का मोअज्ज़मा से रुखसत हुआ ! तो मक्का मुकर्रमा का बच्चा-बच्चा अहले बैत के इस काफिले को रुखसत होता देखकर आबदीदा और गमगीन हो रहा था !

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हजरत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु का यह काफिला जब मकामे शकूक़ में पहुंचा तो कूफ़ा (Kufa) से आने वाले एक आदमी ने हज़रत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु को बताया कि कूफियों ( Kufa Walo Ne ) ने बेवफाई की ! और हजरत मुस्लिम रजियल्लाहु अन्हु शहीद कर दिये गये !

कूफ़ा का सफ़र

हजरत इमाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने यह ख़बर सुनकर इन्ना लिल्लाहि व इन्‍ना इलैहि राजिऊन पढ़ी ! फिर खेमे में आये ! हजरत मुस्लिम की साहबज़ादी सामने आयी तो उसके सर पर शफकत के साथ हाथ फेरा ! और उसे तसलल्‍ली व शफक़त आमेज बातें फरमाई !

साहबज़ादी ने खिलाफे आदत बात देखकर अर्ज की कि आज तो आप मुझ पर यतीमाना नवाजिश फरमा रहे हैं ! शायद मेरे वालिद नहीं रहे !

यह सुनकर हज़रत इमाम बे इख्तियार रो पड़े ! और फरमाया: बेटी ! गम न कर ! मैं तेरा बाप हूं ! मेरी बहन॑ तेरी मां है ! और मेरी लड़कियां लड़के तेरे भाई बहन हैं ! साहबज़ादी रोने लगी !

फरजन्दाने मुस्लिम दौड़े ! और वालिद की शहादत की ख़बर सुनकर वह भी रोये और फिर इंतिहाई दिलेरी से फरमाने लगे ! चचाजान ! हम कूफियों से बाप के खून का बदला लेंगे ! या खुद भी उन्हीं की तरह शहीद हो जायेंगे !

हज़रत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु ने फिर अपने हमराहियों में एक तकरीर फरमाई ! और फरमाया कि कूफियों ( Kufa Walo Ne ) ने बद अहदी की ! और मुस्लिम ( रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ) को शहीद कर दिया !

तुममें से जिसका जी चाहे वापस चला जाये ! चुनांचे बाज लोग जो इधर-उधर से आकर मिल गये थे ! वह वापस चले गये ! जो शहीद होने वाले थे वह रह गये !

कूफ़ा का सफर

आगे बढ़े तो एक मकाम सालबा पर आकर उतरे ! हज़रत अपनी बहन हज़रत ज़ैनब रजियल्लाहु तआला अन्हा की जानू पर सिर रखकर सो गये ! थोड़ी देर बाद रोते हुए उठे ! और फरमाया: बहन !

मैंने नानाजान को ख़्वाब में देखा है ! आप रो-रो कर फरमा रहे हैं कि ऐ हुसैन ! तुम जल्द हमसे आकर मिलोगे ! एक सवार कह रहा है ! कि लोग चल रहे हैं ! और उनकी कज़ाए उनकी तरफ चल रही हैं !

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हजरत अली अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया अब्बाजान ! क्‍या हम हक पर नहीं हैं ? इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया बेशक हम हक पर हैं ! और हक हमारे साथ है !

हज़रत अली अकबर ने अर्ज की तो फिर मौत का क्या खौफ कि एक न एक दिन तो मरना ही है ! अब्बाजान ! हम शहादत के बाग को फला फूला देख रहे हैं ! दुनिया से बेहतर घर और नेमतें हमारे सामने हैं ! (तज़किरा सफा 57 )

सबक : हज़रत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु और आपके अहले बैत सभी हक की खातिर कमर कसे हुए थे ! और उन्हें मौत का कोई डर न था ! यजीद के फिस्क व फूुजूर के खिलाफ आवाज बुलंद करने में उन्हें किसी दुनियावी नुकुसान का डर नहीं था!

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