Imaam Hussain in Karbala | कर्बला में इमाम हुसैन

अस्सलामु अलैकुम मेरे प्यारे दोस्तों हजरत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु की रवानगी की ख़बर पाकर इब्ने ज़्याद ने हुर्र बिन रुबाही को एक हज़ार का लशकर देकर हजरत इमाम को घेर कर कूफा में लाने के वास्ते आगे भेज दिया !

हज़रत इमाम रजियय्ललाहु तआला अन्हु ने जब लशकर को देखा तो एक शख्स मालूम करने के लिये भेजा कि यह कैसा लशकर है ! इतने में हुर्र इब्ने रुबाही खुद हज़रत इमाम के सामने आया ! और कहने लगा कि इब्ने-ज़्याद ने आपको घेर कर कूफा में ले जाने के लिये भेजा है !

हज़रत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु ने इस लशकर में ख़ुत्बा पढ़कर सुनाया कि ऐ लोगो ! मेरा इरादा इधर आने का नहीं था ! मगर पै दर पै तुम्हारे ख़त पहुंचे ! कासिद आए कि जल्द जाओ ! तो मैं आया !

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हुर्र बोले कि खुदा की कसम ! मैं उन खुतूत से ख़बरदार नहीं हूं ! हज़रत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमाया: मगर तुम्हारे इसी लशकर में बहुत से ऐसे आदमी मौजूद हैं ! जिन्होंने मुझे ख़त लिखे ! फिर आपने खुतूत पढ़कर सुनाये ! अक्सर ने सिर नीचे किया और कोई जवाब न दिया!

हुर्र ने हजरत इमाम रजियल्लाहु अन्हु से कहा कि हज़रत ! इब्ने-ज़्याद ने मुझे आपको घेर कर कूफा में चलने का हुक्म दिया है ! मगर मेरे हाथ कट जायें जो आप पर तलवार उठाऊं !

चूंकि मुख़ालिफ मेरे साथ हैं, इसलिये मसलेहत यही है कि मैं आपके .हमराह (साथ) रहूं ! रात काे आप मसतुरात (औरतों) का बहाना करके अलाहदा उतरें ! और जब लशकर वाले सो जायें तो आप जिस तरफ चाहें चले जायें  ! मैं सुबह को कुछ देर जंगल में तलाश करके वापस चला जाऊंगा ! और इब्ने ज़्याद से कुछ बहाना कर दूंगा ! ( सिर्रुश्शहादतैन सफा 16 , तज़किरा सफा 57 )

कर्बला में इमाम हुसैन

सबक : हजरत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु महज हुज्जत के लिये उन लोगों की दावत पर वहां आये थे ! और सिर्फ दीन की हिमायत के जज़्बा आपको आगे ले गया ! जो गुस्ताख़ आपका मुद्दा हुकूमत हासिल करना बताते हैं ! वह गौर करें बकौल उनको आपका यही मुद्दा होता तो आप उस बेसर व सामानी के साथ हरगिज़ सफर न फरमाते ! जबकि आपको इल्म था कि दुशमन बेहद क़वी हैं ! और हज़ारों की तादाद में लशकर रखता है!

इधर लशकर अजीम ! उधर चंद थोड़े से पाक लोग ! क्या कोई अक्ल का दुशमन कह सकता है ! कि इस बेसर व सामानी के साथ आप सलतनत हासिल करने को निकले थे ? हरगिज़ नहीं बल्कि आपको मैदान में सिर्फ हिमायत दीन का जज़्बा ले गया था।

न अपनी आन की खातिर, न अपनी शान की खातिर

वह मैदां में निकल आये फकत ईमान की खातिर !

दश्ते करबला

हज़रत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु को कूफा की रवानगी की ख़बर पाकर !  इब्ने ज़्याद ने हुर्र इब्ने रुबाही की क़्यादत में एक लशकर आगे भेज दिया था ! हुर्र इब्ने रुबाही मर्दे सईद ने हज़रत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु को मशवरा दिया कि वह मसतूरात का बहाना फरमाकर रात को अलहदा उतरें ! और रात ही को कहीं तशरीफ ले जायें  !

चुनांचे हजरत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु ने यही किया ! रात को जब यज़ीदी लशकर सो गया तो आपने वहां से कूच किया ! अंधेरी रात में मालूम न हुआ कि किधर जा रहे हैं ! सुबह को एक मैदान हौलनाक में पहुंचे ! यहां उतरे तो इस मैदान में जिस जगह मेख गाड़ते जमीन से खून निकलता !

जिस दरख्त से लकड़ियां तोड़ते खून टपकता ! यह हाल देखकर इमाम ने पूछा कि तुममें से किसी को इस दश्त ( जंगल ) का नाम मालूम है ! एक ने कहा कि इसे मारया कहते हैं ! फरमाया कि शायद कोई दूसरा नाम भी हो ! लोगों ने कहा कि इसे करबला भी कहते हैं ! यह सुनकर आपने फरमाया जमीन करबला यही है ! हमारे खून की बहने की जगह यही है ! अब हम यहां से कहीं नहीं जा सकते !

दुशमन यहां पे खून हमारा बहायेंगे

जिन्दा यहां से हम न कभी फिर के जायेंगे

आले नबी का होगा इसी जा पे खात्मा

सब तिश्ना लब यहां पे सर अपना कटायेंगे

कर्ब व बला नाम है इसी सरजमी का

बच्चे यहां पे पानी का क़तरा न पायेंगे

होगा हर इक शहीद यहां मुस्तफा का लाल

और लाश, कत्लगाह से हम सब की लायेंगे

अली अकबर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने अर्ज किया अब्बाजान ! आप क्या फरमा रहे हैं ? फरमाया: बेटा तेरे दादाजान अली मुर्तज़ा सिफ्फीन हुए यहां ठहरे ! और बड़े भाई हसन रजियल्लाहु तआला अन्हु के जानू सिर रखकर सोये ! मैं सरहाने खड़ा था ! कि रोते हुए उठे ! बड़े भाई ने का सबब पूछा !

तो फरमाया: मैंने अभी अभी ख्वाब में इस जगह हुसैन को दरियाए खून में डूबता हुआ पांव मारता हुआ ! और फरयाद करता हुआ देखा है ! मगर कोई उसकी फरयाद नहीं सुनता ! फिर मुझसे फरमाया बेटा ! जब तुझे इस जगह वाकिया अज़ीम दरपेश होगा ! तो तू उस वक्त क्या करेगा ? मैंने अर्ज किया कि सब्र करूंगा ! इस पर फरमाया बेटा ऐसा ही करना कि सब्र करने वालों का सवाब बेशुमार है !

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यह फरमाकर आपने अस्बाब उतरवाया ! और नहरे फुरात के पास खेमा नस्ब फरमाया ! उस दिन मुहर्रम की 2 तारीख थी ! और हिजरी का 61 वां साल ! ( तजकिरा सफा 61 )

सबक : दश्ते करबला अज़्ल ही से हज़रत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु के लिये इम्तिहानगाह मुकर्रर हो चुका था ! हज़रत को खुद भी अपने इस इम्तिहान देने का इल्म था ! और यह आप ही की शान और आप ही का हिस्सा है ! कि इस जबरदस्त इम्तिहान के लिये आप हर तरह से तैयार थे ! आपने पाए इस्तिक्बाल और अज़्म व सिबात में जर्रा बराबर भी लग्ज़िश न आने दी ! यानी आप अपने पक्के इरादे से नहीं डगमगाये  !

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