Suraj Aur Chand Grahan Ki Namaz | सूरज और चांद ग्रहण की नमाज का तरीका

अस्सलामु अलैकुम नाज़रीन सूरज और चांद ग्रहण की नमाज का तरीका जिसको कुछ लोग Salatul Kusuf के नमाज़ से जानते है इसको सीखना चाहते है और अपने गुनाहों को बकसवाना चाहते है तो आप सही जगह आए है.

सलातुल कुसुफ़ की नमाज़ का भी बहुत ज्यादा फज़िलते और फायदे है जैसे इससे पिछले पोस्ट में Salatul Hajat ki Namaz में देखा है.

नबी (सल्लाहू अलैहे वसल्लम) ने फ़रमाया है की जब कुसुफ़ हो जाए यानि जब सूरज या चाँद ग्रहण को इसकी नमाज़ अदा करे ये सुन्नते मोकिदा है.

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इब्ने उमर रजी अल्लाहु अन्हो रिवायत करते है की रसूल अल्लाह सल्लाहू अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया की, “सूरज और चाँद ग्रहण में किसी की मौत या जिंदगी से नहीं लगता बलके ये अल्लाह ता’अला की निशानिया में से दो निशानिया है, इसलिए जब तुम ये देखो तो नमाज़ पढो

लेकिन आज कल के मुस्लमान तो बस सूरज या चाँद ग्रहण के वक़्त टीवी चैनल या मौज मस्ती करते रहते है और नमाज़ के बारे में सोचते तक भी नहीं है.

इसलिए इस वेबसाइट का मसकद है की ज्यादा से ज्यादा मेरे मुस्लिम भाई और बहन को इस्लामिक तौर तरीके के बारे में जानकारी हो सके.

सूरज और चाँद ग्रहण की नमाज़ क्या है?

सूरज और चांद ग्रहण की नमाज एक सुन्नत मोकिदा है यानि इस नमाज़ को पढ़ने वाले के नाम बहुत सारे सवाब लिखा जायेगा और नहीं पढ़ने वाले पर कोई गुनाह नहीं है. और नमाज़ को लोग कुछ और नमाज़ से भी जानते है जैसे: सलातुल कुसुफ की नमाज, कुसुफ की नमाज, सलातुल कुसुफ आदि.

सलातुल कुसुफ की नमाज का वक्त क्या है

सलातुल कुसुफ़ की नमाज़ का वक़्त भी बाकि नमाजो की तरह मुकरर एक खास वक़्त में होता है और इसका वक़्त जब सूरज या चाँद की ग्रहण शुरू हो जाए तब से सलातुल कुसुफ़ की नमाज़ शुरू हो जाती है.

उसी तरह जब चाँद और सूरज की ग्रहण ख़त्म हो जाए तो सलातुल कुसुफ़ की नमाज़ का भी वक़्त खत्म हो जाता है जैसे फजर से ईशा तक की नमाज़ का एक मुकरर वक़्त होता है.

सूरज और चांद ग्रहण की नमाज की रकात

सलातुल कुसूफ़ की नमाज़ की 2 रकात होती है जो की सुन्नत मोकिदा है लेकिन ये बाकी नमाजो की तरह नहीं है जिसमे एक रकात में एक कयाम, एक रुकू, एक सजदा और एक तशाहुद बलके इसका तरीका कुछ अलग होता है.

इस नमाज़ के अन्दर दो रुकू एक रकात में होती है यानि यह नमाज़ 4 रुकू और 4 सजदा के साथ इसको पढ़ना है जिसका तरीका निचे बताया गया है.

सलातुल कुसुफ़ की नमाज़ की नियत कैसे बने

अमल का दारोमदार नियत पर है नमाज़ में निय्यत करना ज़रूरी है इसलिए के नमाज़ को मालूम रहे के वो कौन सा नमाज़ पढ़ रहा है मसलन जोहर की नमाज़ या ईशा या फ़र्ज़ या सुन्नत.

नियत करता हूं मैं 2 रकात नमाज सलातुल कुसुफ़ की नफिल वास्ते अल्लाह ताआला के रुख मेरा काबा शरीफ की तरफ अल्लाहू अकबर

सूरज और चांद ग्रहण की नमाज पढ़ने का तरीका

इससे पहले आपने समझ की सूरज और चाँद ग्रहण की नमाज़ का वक़्त, रकात और नियत के बारे लेकिन अब जानते है इस नमाज़ का तरीका शुरू से आखिर तक इससे पहले एक सहीह बुखारी का हदीस देखे.

हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजी अल्लाह अन्हो से रिवायत है के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में सूरज ग्रहण हुआ, तो आपने जमात के साथ 2 रकाते नमाज़ पढाई.

आप ने सुरह बक़रह तिलावत करने की मक्दर के करीब लम्बा कयाम किया फिर लम्बा रुकू किया, फिर रुकू से सर उठा कर लम्बा कयाम किया, फिर पहले रुकू से कम लम्बा रुकू किया, फिर दो सजदे किए.

फिर सजदा से खड़े हो कर लम्बा कयाम किया फिर दो रुकू किए फिर दो सजदे करके ताशःहुद पढ़ कर सलाम फेरा तो सूरज रौशन हो गया था और फिर खुतबा दिया जिसमे अल्लाह की तारीफ़ और सना बयान फ़रमाया.

Suraj Garhan ki Namaz ka Tarika वही है वो नफिल या सुन्नत मोकिदा का होता है लेकिन इसमें एक फर्क है जो हर रकात में दो रुकू होगा यानि 2 रकात की नमाज़ में 4 रुकू होगा.

इस नमाज़ के लिए अज़ान और अकामत नहीं होगा लेकिन हाँ लोगो को बुलाने के लिए आवाज़ लगा सकते है या अलौन्स्मेंट करा सकते है.

मै मान कर चल रहा हूँ की आप वजू करके मस्जिद में चले गए है और कोशिश करे की जमात के साथ पढ़े और जमात न मिले तो अकेले भी पढ़ सकते है आप सबसे पहले नियत करे जिसका तरीका उपर बताया गया है.

सलातुल कुसुफ़ की पहली रकअत

सबसे पहले नियत करे और नियत करके दोनों हाथो को उठाय और बांध ले फिर एक बार सना पढ़े फिर आउज़ बिल्लाहे मिन्नस सैतानिर्रजिम और बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम पढ़े.

इसके बाद सुरह फातिहा पढ़े और कोई भी कुरान शरीफ की सूरत को मिलाये लेकिन और नमाज़ की तरह छोटी सूरत नहीं होना चाहिए बलके लम्बा कयाम करना होगा.

अब अल्लाहु अकबर कहते हुए रुकू में जाए तो और रुकू लम्बा करे फिर रुकू से खड़े होकर एक बार और कयाम करे.

यह कयाम पहली की कयाम से छोटी होना चाहिए यानि दूसरी कयाम का समय कम होना चाहिए और इसमें भी अलहम्दो शरीफ और कोई भी सूरत मिलाए.

इसके बाद फिर रुकू में जाए और पहले रुकू से इसमें थोडा कम वक़्त होना चाहिए रुकू से उठने के बाद समिल्लाहु लिमन हमीदा कहते हुए खड़े हो जाये फिर खड़े रहते हुए ही रब्बना लकल हम्द कहे.

अल्लाहु अकबर कहते हुए सजदा में जाए और बाकी नमाजो की तरह दोनों सजदा करे फिर दूसरी रकात के लिए खड़ा हो जाए इस तरह से पहली रकात मुकम्मल हुई.

सलातुल कुसुफ़ की दूसरी रकअत

फिर कयाम करे लेकिन यह कयाम पहली कयाम से छोटी होना चाहिए कयाम मतलब सुरह फातिहा और कोई भी सूरत फिर रुकू में जाए और पहली रकात में दूसरी रुकू से छोटी रुकू होना चाहिए.

फिर कयाम के लिए खड़े हो जाए और यह कयाम तीसरी कयाम से छोटी होना चाहिए फिर रुकू में जाए और धयान दे यह रुकू तीसरी रुकू से छोटी रहना चाहिए.

रुकू के बाद सजदा में जाए और यहाँ से तरीका वही रहेगा जो पांच वक़्त की नमाज़ का होता है दोनों सजदा करने के बाद तशाहुद में बैठे और दोनों तरफ सलाम फेर दे.

इस तरह से आपकी सूरज और चांद की नमाज का मुकम्मल तारिका पूरी हुई. इसी तरह अगर किसी सख्स को पिछला और अगला गुनाह माफ़ करवाना है तो उसे चाहिए की Salatul Tasbeeh ki Namaz पढ़े.

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सूरज और चांद ग्रहण की नमाज़ जमात के साथ पढ़ना चाहिए

नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने सलातुल कुसुफ़ की नमाज़ जमात के साथ पढ़ी और हदीसो में भी बजमात पढने का हुक्म है इसीलिए Suraj aur Chand Grahan ki Namaz जमात के साथ पढ़ना चाहिए लेकिन जमात नहीं हो रहा है तो अकेले भी पढ़ सकते है.

सलातुल कुसूफ़ की नमाज़ में अज़ान और अकामत होती है?

सूरज और चांद ग्रहण की नमाज के लिए न तो अज़ान जरुरी है और न ही नमाज़ की अकामत जरुरी है बस आपको ऐलान कर दे की सलातुल कुसुफ़ की नमाज़ होने जा रहा है.

जिन वक्तो में नमाज़ पढ़ना है उस वक़्त में सूरज या चाँद ग्रहण हुआ तो क्या करे?

इसका आसान सा जवाब है की सलातुल कुसुफ़ भी नमाज़ है ठीक उसी तरह जिस तरह पांच वक्तो की नमाज़ या बाकि नफिल नमाज़ तो इन सभी नमाजो को मकरूह वक्तो में पढ़ना मना किया गया है.

दोस्तों सूरज और चांद ग्रहण की नमाज का तारिका यानि सलातुल कुसुफ़ का तारिका कैसा लगा कमेंट में जरुर बताये.

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