Quran Ki Fazilat Hamari Zimedari | कुरान की फजीलत हमारी जिम्मेदारी

अस्सलामु अलैकुम मेरे प्यारे अजिज भइओ बहनो कुरआने पाक की पढ़ाई का महत्व और फजीलत को ध्यान में रखते हुए, कुरआन को सही ढंग से पढ़ना और समझना बहुत महत्वपूर्ण है। यहां कुछ कुरआने पाक पढ़ने के आदाब और महत्वपूर्ण तत्व दिए गए हैं

कुरआने पाक पढ़ने की फ़ज़ीलत

कुरआन मजीद अल्लाह तआला का मुबारक कलाम है, इसका पढ़ना और पढ़ाना, सुनना और सुनाना सब सवाब का काम है। कुरआने पाक का एक हर्फ़ पढ़ने पर दस नेकियों का सवाब मिलता है।

जैसा कि नबीए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का फ़रमाने आलीशान है कि “जो शख़्स किताबुल्लाह (कुरआन) का एक हर्फ़ पढ़ेगा उसको एक नेकी मिलेगी जो दस के बराबर होगी।” (तिरमिज़ी हदीस नं .2919)

हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने कुरआने पाक सीखने और सिखाने वाले की शान बयान फ़रमाते हुए इरशाद फ़रमाया कि “तुम में बेहतरीन शख़्स वो है जिसने कुरआन सीखा और दूसरों को सिखाया। (बुखारी हदीस नं . 5027)

वह लोग जिनके सीने में कुरआन नहीं वो वीरान घर की तरह हैं।

जैसा कि नबीए अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि “जिसके दिल में कुरआन का कोई हिस्सा नहीं वह वीरान घर की तरह है।” (तिरमिज़ी)

कुरआने पाक शफाअत करेगा

जैसा कि हदीसे पाक में हैं कि “जिस शख़्स ने कुरआने पाक सीखा और सिखाया और जो कुछ उसमें है उस पर अमल करा, कुरआन शरीफ़ उसकी शफाअत करेगा और जन्नत में ले जायेगा। (अलमोअजमुल कबीर)

हदीसे पाक में है जिस शख्स ने कुरआने पाक की एक आयत या दीन की कोई सुन्नत सिखाई कियामत के दिन अल्लाह तआला उसके लिये ऐसे सवाब तैयार फ़रमायेगा कि उससे बेहतर सवाब किसी के लिये नहीं होगा। (जमउल जवामेंअ) सरकारे दो जहाँ सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का फ़रमाने आलीशान है कि “जिसने कुरआने अज़ीम की एक आयत सिखाई जब तक उस आयत की तिलावत होती रहेगी उसके लिये सवाब जारी रहेगा। (जमउल जवामेंअ)

कुरआने पाक किस तरह पढ़ा जाये?

आज हम में से बहुत सारे लोग इस मुआमले में लापरवाही बरतते हैं और कुरआन पढ़ना नहीं सीखते। कुछ लोग तो कुरआन पढ़ना ही नहीं जानते और कुछ लोग वह हैं जो सही से नहीं पढ़ते हालांकि कुरआन को तजवीद के साथ पढ़ना ज़रूरी है ताकि नमाज़ भी फ़ासिद होने से बचें और गलत कुरआन पढ़ने का वबाल भी न हो।

अल्लाह तआला कुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाता है “और कुरआन को खूब ठहर – ठहर कर संवारकर पढ़ो।” (पारा 29 ए सुरह मुज़म्मिल)

इस आयत की तफ़सीर में हज़रत अली रदि अल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं कि तरतील दो बातों के मजमूए का नाम है।

  1. हुरुफ को अच्छाई (इस तरह कि हर हर्फ दूसरे हर्फ़ से जुदा हो) के अदा करना।
  2. वक्फों को पहचानना (यानी कहाँ आयत ख़तम हो रही है कहाँ नहीं, कहाँ रुकना जायज़ हैं कहाँ नहीं)।

हज़रत अली रदि अल्लाहु तआला अन्हु के इस कौल से यह बखूबी पता चलता है कि हमें कुरआन को किस तरह पढ़ना चाहिये।

लेकिन हम ने आज इस चीज़ को पीठ पीछे डाल दिया है। हम न खुद कुरआन सीखते हैं और न ही अपने बच्चों को  कुरआन सिखा रहे हैं। हमें चाहिये कि हम खुद भी कुरआन सीखें और अपने बच्चों को भी सिखायें।

अगर आप पढ़े हुये हैं लेकिन सही से नहीं पढ़ा है, तजवीद के साथ नहीं पढ़ते हैं तो आप भी अपना कुरआन सही करें और गलत कुरआन पढ़ने के वबाल से बचें। याद रखें कि जिनका कुरआन सही नहीं है उनकी नमाज़ें भी दुरुस्त नहीं होतीं क्योंकि नमाज़ में कुरआन का पढ़ना फ़र्ज़ है और अगर नमाज़ में इस तरह गलत कुरआन पढ़ा कि उसके माना बिगड़ गये तो नमाज़ नहीं होगी।

कुरआने पाक पढ़ने के आदाब

  • कुरआने पाक शुरु करते वक्त अऊज़ुबिल्लाह पढ़ना मुस्तहब है और सूरत के शुरू में बिसमिल्लाह पढ़ना सुन्नत है और अगर सूरत का शुरु न हो तो मुस्तहब है।
  • कुरआने मजीद को इस तरह पढ़ना कि हुरुफ़ में कमी बेशी हो जाये तो यह नाजायज़ है।
  • मजमे में सब लोग बुलन्द आवाज़ से कुरआन पढ़ें यह हराम है। लिहाज़ा मजमे में आहिस्ता पढ़ें।
  • जो शख़्स गलत पढ़ता हो तो सुनने वाले पर ज़रूरी है कि बता दे जब्कि बताने की वजह से कीना और हसद पैदा न हो।
  • जब कुरआने मजीद पढ़ा जाये तो तमाम हाज़िर लोगों पर सुनना फ़र्ज़ है जब्कि वो मजमा सुनने के लिये हाज़िर हो।
  • बाज़ारों में और जहाँ लोग काम में मशगुल हों वहाँ बुलन्द आवाज़ से पढ़ना ना जायज़ है।
  • जब कुरआने पाक ख़तम हो तो 3 बार सूरह इख़्लास (कुल हुवल्लाह) पढ़ना बेहतर है।
  • ख़त्मे कुरआन का तरीका यह है कि सुरह नास पढ़ने के बाद सुरह फ़ातिहा और सुरह बक़रह की 5 आयतें पढ़िये। इसके बाद दुआ मांगे।

हदीसे पाक में आया है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इसी तरह ख़तम फ़रमाते थे।

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