Maa Baap Ki Ahamiyaat in Islam | इस्लाम में माँ बाप की अहमियत

अस्सलामो अलैकुम दोस्तों इस पोस्ट में आप जानेंगे माँ बाप के वारे में मज़हबे इस्लाम क्या कहता है ! आज दुनिया में fathers day – mothers day बनाने का चलन है ! और एक ही दिन लोग माँ-बाप को अहमियत देते  है !

आज इस पोस्ट में हम इस सवालो के जवाब देने वाले है ! जो अक्सर गूगल पैर सर्च कीये जाते है

माता पिता के वारे में मज़हबे इस्लाम क्या कहता है ?

इस्लाम में माँ बाप की अहमियत

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मां – बाप की अहमियत –

  1. कहा जाता है कि मां के क़दमो तले जन्नत है ! मां का आंचल जन्नती पेड़ की छाया हैँ ।
  2. मां बाप की खिदमत का हक़ ‘अदा करने वाले ही जन्नत के हक़दार होंगे ।
  3. मां -बाप की नाफ़रमानी करने वाले जहन्नम में तरह-तरह के अज़ाब ‘ पाएंगे ।
  4. मां -बाप की दुआओं में औलाद की कामयाबी व तरक़्क़ी है 1
  5. मां-बाप को इज्जत व मुहब्बत की नजर से देखना भी इबादत हैँ।
  6. मां बाप की नाफ़रमानी गुनाहे कबीरा है ।
  7. जो लोग मां बाप की नाफ़रमानी करते हैँ वह अल्लाह की रहमत से महरूम रहेंगे ।
  8. मां-बाप – यह ऐसी दौलत है जो खो जाने पर दोबारा नहीं मिलती । ”
  9. कितले नादाँ हैं वह लोग जो मां-बाप की दुआएं लेने के बजाय दूसरे से दुआ की दरख़्वास्त करते हैँ ।
  10. याद रखिए जिससे उनके मां-बाप राज़ी न हों उन्हें किसी की भी दुआ काम नहीं आ सकती । किसी भी सदका खैरात और नज़र नियाज़ से कोई भला नहीँ हो सकता ।
  11. मां-बाप की नाफ़रमानी करने वालों की दुआ क़बूल नहीं होती । दुआओं के लिए हमारे मां बाप ही क़ाफ्री हैँ ! इसलिए उनकी खिदमत करके, उन्हें राजी करके बे मांगे उनकी दिली दुआए हासिल करनी चाहिए ।
  12. मां बाप को नाराज़ करने वाले अल्लाह व ‘रसूल को नाराज़ करते हैँ ! और अल्लाह व रसूल को नाराज़ करने वाले कभी बामुराद नहीं हो सकते ।

माँ बाप के बारे में क्या कहता है क़ुरआन :-

तुम्हारे रब ने फ़ैसला कर दिया है कि उस (अल्लाह) के सिवा किसी की बन्दगी न करो ! और माँ-बाप के साथ अच्छा बरताओ करो।

अगर उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे की मंज़िल पर पहुँच जाएँ तो उन्हें ‘उफ़’ तक न कहो और न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे मेहरबानी से बात करो !

क़ुरआने मजीद का यह हुक्म हर मुसलमान के लिये वाजिब है ! अल्लाह के नज़दीक वालिदैन की यह अज़मत है कि उन के सख़्त और तकलीफ़ वाले रवय्ये पर भी औलाद को लफ़्ज़े उफ़ भी कहना उन के मरतबे के ख़िलाफ़ है ! कहा कि उन के साथ बे अदबी और गुस्ताख़ी और बद सुलूकी से ना पैश आया जाये !

हालांकि लफ़्ज़े उफ़ कहना कोई बहुत बड़ी बे अहतेरामी नहीं है आम बात चीत में इस लफ़्ज़ को बुरा नहीं समझा जाता लेकिन इस लफ़्ज़ से मिज़ाज के ख़राब होने की बू आती है ! लिहाज़ा इस को भी ख़ुदा ने वालिदैन की शान के ख़िलाफ़ क़रार दिया है !

इस्लाम ने औलाद को माँ बाप के लिए कई हुक्म दिए हैं ! जिनको मानना उनके लिए इतना ही ज़रूरी है, जितना कि खुदा के सिवा किसी ओर की इबादत न करना !

इस्लाम कहता है,

अपने माँ बाप के साथ अच्छा सुलूक करो।

खुदा से उनके लिए दुआ करो कि वह उनपर वैसा ही करम करे जैसा बचपन मै उसके पेरेन्टस ने उस पर किया ! अपने माँ बाप के अहतेराम में कुछ बातें शामिल है !

उनसे सच्चे दिल से मुहब्बत करें।हर वक़्त उन्हें खुश रखने की कोशिश करें ! अपनी कमाई दौलत, माल उनसे न छुपाएँ !

माँ बाप को उनका नाम लेकर न पुकारें ! अल्लाह को खुश करना हो तो अपने , माँ बाप को मुहब्बत भरी निगाह से देखो !

अपने माँ बाप से अच्छा सुलूक करोगे तो तुम्हारी औलाद तुम्हारे साथ अच्छा सुलूक करेंगी !

माँ बाप से अदब से बात करे, डांट डपट करना अदब के खिलाफ है ! दुनिया में पूरी तरह उनका साथ दो।माँ बाप की नाफरमानी से बचो ! क्योंकि माँ बाप की खुशनूदी में अल्लाह की खुशनूदी है !और उनकी नाराज़गी में अल्लाह की नाराज़गी ।

अगर चाहते हो कि खुदा तुम्हारे काम में फायदा दे, तो अपने माँ बाप से रिश्तेदारों से अच्छा सुलूक बनाए रखे ! अगर उनमे से एक या दोनों वफात पा जाये तो कभी कभी कब्र पर जाया करे,और उनके लिए दुआ करो ! दुआ करो कि ‘ये अल्लाह उनपर वैसा ही रहम करना ! जैसा उन्होंने मेरे बचपन में मेरी परवरिश के वक़्त किया था।

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आज हम अपनी इन्हीं मज़हबी बातों से भटक गये है, हम अपने माँ बाप को अहतेराम देने के बजाय हम अपनी दुनियावी ख्वाहिशों के लिए उनसे लड़ते झगड़ते हैं ! मरने के बाद उनके कब्र की जियारत तो बहुत दूर की बात है उनके लिए कोई सद्का खैरात तक नहीं करते !

बुढापे में उनकी ख़िदमात के बजाय अपने दुनिया के फुजूल कामों में लगे रहते है !अल्लाह से मेरी ये दुआ है कि वो हमें इन गुनाहों से बचाए !

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