Imam hussain history in hindi | इमाम हुसैन की कहानी हिंदी में

hazrat imam hussain

imam hussain साहब का जन्म दिन और उनके वालिद वालिदा का नाम उनके चार लड़के दो लड़कीओ का नाम क्या है

दोस्तों आज हम इस पोस्ट में बात करेंगे imam hussain साहब के बारे में पूरी कहानी ओ कौन थे उनके वालिद वल्दा का नाम क्या था और उनके कितने लड़के थे लड़कियां कितनी थी तो आप इस पोस्ट को लास्ट तक जरूर पढ़े

हजरत imam hussain का जन्म इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक 3 शाबान सन 4 हिजरी (यानी 8 जनवरी सन 626) को सऊदी अरब के शहर मदीना में हुआ और उनके वालिद (पिता ) का नाम हजरत इमाम अली इब्ने तालिब वालीदा (माता) का नाम हजरते जनाबे बिन्ते फातिमा अली इब्ने तालिब था उन्होंने इस्लाम फैलाना शुरू किया तब लगभग अरब के सभी कबीलों ने मोहम्मद साहब की बात को मानकर इस्लाम धर्म को कबूल कर लिया था.

Imam Hussain History In Hindi

हजरत हुसैन शाहब के 4 नवासे (लड़का ) और दो 2 नवासी (लड़की ) थी पहले नवासे (लड़का ) का नाम हजरत अली जैनुल आबेदीन था दूसरे नवशे (लड़का) का नाम हजरत अली अकबर था तीसरे नवासे (लड़का) का नाम हजरत अली असगर था चौथे नवासे (लड़का) का नाम जफ़र इब्ने हुसैन था और पहले नवाशी ए रसूल (लड़की) का नाम हजरत सय्यदा बीबी शकीना था दूसरे नवाशी ए रसूल (लड़की) का नाम हजरत सय्यदा बीबी फातिमा अल सुगरा था

हजरत इमाम हुसैन साहब मदीना छोड़ कर इराक यानि कर्बला क्यू गए

लगभग 22 दिन तक रेगिस्तान की यात्रा करने के बाद इमाम हुसैन क़ा काफ़िला (2 अक्तूबर 680 ई० या 2 मुहर्रम 61 हिजरी) इराक़ के उस स्थान पर पहुँचा, जिसको क़र्बला कहा जाता है. इमामे हुसैन की सभी सैनिक इमाम के पीछे पीछे कर्बला में आ चुकी थी इमाम के यहाँ पड़ाव डालते ही यज़ीद की फौजें हज़ारों कि संख्या में पहुँचने लगीं यज़ीदी सेनाओं ने सब से पहले फ़ुरात नदी(अलक़मा नहर) के किनारे से हजरत इमाम हुसैन साहब को अपने शिविर हटाने को इलान किया और इस तरह अपने नापाक इरादों क़ा जिक्र किया

पांच दिन बाद यानी सात मुहर्रम को नहर के किनारे पर कड़ा पहरा लगा दिया और इमाम हुसैन के परिवारों को और उनके साथियों के नदी से पानी लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया. रेगिस्तान की झुलसा देने वाली गर्मी में पानी बंद होने से इमाम हुसैन के बच्चे प्यास से तड़पने लगे दो दिन बाद अचानक यज़ीदी सेनाओं ने इमाम के क़ाफिले पर हमला कर दिया. इमाम हुसैन ने यज़ीदी सेना से एक रात की मोहलत मांगी ताकि वह अपने अल्लाह की इबादत कर सकें यज़ीदी सेना उनके इस फरमान को मान गए क्योंकि यजीदी सेना को मालूम था कि यहाँ से अब इमाम हुसैन और उनके साथी कहीं नहीं जा सकते और एक दिन की और प्यास से उनकी शारीरिक और मानसिक हालत को और भी कमज़ोर बना देगी

क्यू मुहर्रम में मुसलमान सोक मनाते है|

रात भर इमाम हुसैन उनके परिवार वालों और उनके साथी अल्लाह कि इबादत करते रहे इसी बीच इमाम हुसैन 9 मोहर्रम की रात अँधेरा करने को कहा उसके बाद सब से कहा कि तमाम तारीफ़ें खुदा के लिए हैं मैं दुनिया में किसी के साथियों को इतना जाँबाज़ वफादार नहीं समझता हूँ जितना कि मेरे साथी हैं और न दुनिया में किसी को ऐसे रिश्तेदार मिले जैसे नेक और वफ़ादार मेरे रिश्तेदार हैं खुदा तुम्हें तौफ़ीक़ देगा आमीन आगाह हो जाओ कि कल दुश्मन जंग ज़रूर करेगा.

मैं तुम्हें ख़ुशी से इजाज़त देता हूँ कि तुम्हारा दिल जहाँ चाहे चले जाओ मैं हरगिज़ तुम्हें नहीं रोकूंगा. यजीदी सेना केवल मेरे खून की प्यासे है अगर वह मुझे पा लेंगे तो तुम्हें तलाश नहीं करेंगे इसके बाद इमाम हुसैन ने सारे चिराग़ भुझाने को कहा और बोले इस अँधेरे मैं जिसका दिल जहाँ चाहे चला जाए.

तुम लोगों ने मेरे प्रति वफ़ादार रहने कि जो क़सम खाई थी वह भी मैंने तुम पर से उठा ली है इस घटना पर बात करते हुए मगर कर्बला में हर तरह से मौका देने पर भी इमाम का साथ छोड़ने पर कोई राज़ी नहीं हुआ. ज़ुहैन इब्ने क़ेन जैसा भूढ़ा सहाबी कहते है कि ऐ इमाम हुसैन अगर मुझको जान क्यू नहीं चली जाये मैं आपको छोड़ कर नहीं जाऊंगा सारे सहाबी और उनके सैनिक सभी रुक गए और दसवीं मुहर्रम को अचानक से हमला कर देते है|

दास्ताने इमाम हुसैन हिंदी में

और इसी जंग में इमामे हुसैन साहब की वफ़ात हो जाती है और साथ ही उनके लस्कर और उनके नवासे अली असगर भी सहीद हो गए इमामे हुसैन साहब ने अपनी गर्दन कटा कर पूरी दुनिया को बता दिए की इस्लाम किसी के सामने झुक सकता नहीं है इसी तरह सहीद होकर इस्लाम की सान बचा लिए 

यज़ीदीओ का कहना था की जो मैं कहूं वही करना है इसी कारन कर्बला का युद्ध हुआ हजरत इमाम हुसैन साहब अगर यजीद के कहना मान लेते तो इस्लाम पूरा बर्बाद हो जाता यजीद एक कट्टर पंथी था         

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