Hamare Nabi Karim Ki Hukumaat | हमारे नबीये करीम की हुकूमत

अस्सलामु अलैकुम मेरे प्यारे दोस्तों मदीना मुनव्वरा में एक मर्तबा बारिश नहीं हुई थी ! पुरे मदीना में सूखे का आलम था ! लोग बड़े परेशान थे |

एक जुमा के रोज़ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक़रीर फरमा रह थे,

तो एक शख़्स उठा और अर्ज करने लगा या रसूलल्लाह ! माल ख़त्म हो गया और औलाद फाका करने लगी।

दुआ फरमाइए की बारिश हो जाए !

हुजूर सललल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उसी वक्‍त अपने प्यारे-प्यारे नूरानी हाथ उठाए | उस वक़्त वहां आसमान बिल्कुल साफ था,  बादल का नाम व निशान तक न था। मगर मदनी सरकार के हाथ मुबारक उठे ही थे कि पहाड़ों की तरह से बादल छा गये !और छाते ही पानी बरसने लगा !

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हमारे नबीये करीम (nabi muhammad) की बादलों पर हुकूमत

हुजूर मिंबर पर ही तशरीफ फरमा थे कि पानी  शुरू हो गया इतना बरसा कि छत टपकने लगी | हुजूर के बाल मुबारक से पानी के क॒तरे गिरने लगे ! फिर यह पानी बंद नहीं हुआ बल्कि लगातार अगले जुमा तक बरसता ही रहा !

हुजूर जब दूसरे जुमा का तक़रीर फरमाने उठे तो वही शख़्स जिसने पहले जुमा में बारिश ना होने की

तकलीफ अर्ज की थी उठा ! और अर्ज करने लगा या रसूलल्लाह ! अब तो माल गर्क होने लगा और मकान गिरने लगे।

अब फिर हाथ उठाइए कि यह बारिश बंद भी हो !चुनांचे हुजूर ने फिर उसी वक्‍त अपने प्यारे-प्यारे नूरानी हाथ उठाए

और अपनी उंगली मुबारक से डशारा फरमाकर दुआ फरमाई कि ऐ अल्लाह ! हमारे इर्द गिर्द बारिश हो, हम पर न हो, हुजूर का यह इशारा करना ही था ! कि जिस जिस तरफ हुजूर (Nabi Muhhamad Saw) की उंगली गई ! उस तरफ से बादल फटता गया और मदीना मुनव्वरा के ऊपर सब आसमान साफ हो गया।

मिश्कात शरीफ, सफा 528

सबक : सहाबा किराम मुश्किल के वक्‍त हुजूर ही की बारगाह में फरयाद लेकर आते थे ! उनका यकीन था कि हर मुश्किल यहीं हल होती है ! वाकई वहीं हल होती रही है !

इसी तरह आज भी हम हुजूर के मोहताज हैं ! बगैर हुजूर के वसीला के हम अल्लाह से कुछ भी नहीं पा सकते ! हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की हुकूमत बादलों पर भी जारी है।

चांद पर हुकूमत

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दुशमनों में  बिलखुसूस अबूजहल ने एक मर्तबा हुजूर से कहा कि अगर तुम खुदा के रसूल हो तो आसमान पर जो चांद है ! उसके दो टुकड़े करके दिखाओ । हुजूर ने फरमाया: लो यह भी करके दिया देता हूं !

चुनांचे आपने चांद की तरफ अपनी उंगली मुबारक से इशारा फरमाया ! तो चांद के दो टुकड़े हो गये। यह देखकर अबू जहल हैरान हो गया | मगर बे–ईमान माना भी नहीं और हुजूर को जादूगर ही कहता रहा ।

( हुज्जतुल्लाह सफा 366  बुखारी शरीफ हिस्सा 2  सफा 271 )

सबक : हमारे हुजूर की हुकूमत चांद पर भी जारी है

हमारे नबीये करीम की सूरज पर हुकूमत

एक रोज़ हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहबा नाम की जगह पर जुहर की नमाज़ अदा की ! और फिर हज़रत अली रज़ियल्लाहुअन्हु को किसी काम के लिये रवाना फरमाया | हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के वापस आने तक हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ अस्र भी अदा फरमा ली ।

जब हज़रत अली वापस आये तो हुजूर उनकी आगोश में अपना सर रखकर हुजूर सो गये ! हज़रत अली ने अभी तक नमाज़े अस्र अदा न की थी ! उधर सूरज को देखा तो गुरूब होने वाला था । हज़रत अली सोचने लगे । इधर रसूले खुदा आराम फरमा हैं !

और उधर नमाज़े खुदा का वक्‍त हो रहा है। रसूले खुदा का ख़्याल रखूं तो नमाज़ जाती है ! और नमाज़ का ख़्याल करूं तो रसूले खुदा की नींद में खलल वाके होता है ! करूं तो क्या करूं? आख़िर मौला अली शेरे खुदा रज़ियल्लाहु अन्हु ने फैसला किया कि नमाज़ को कजा होने दो मगर हुजूर की नींद मुबारक में ख़लल न आए !

हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम

चुनांचे सूरज डूब गया और असर का वक्‍त चला गया  ! हुजूर उठे तो हज़रत अली को उदास देखकर वजह दर्याफ्त की

तो हज़रत अली ने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह ! मैंने आपकी इस्लिराहत के पेशे नज़र अभी तक नमाजे अस्र नहीं पढ़ी ! सूरज गुरूब हो गया है !

हुजूर ने फरमाया : तो ग़म  किस बात का ? लो ! अभी सूरज वापस आता है । फिर उसी मकाम पर आकर रुकता है जहां वक्‍ते अस्र होता है । चुनांचे हुजूर ने दुआ फरमाई तो गुरूब-शुदा सूरज फिर निकला ! और उल्टे कदम उसी जगह आकर ठहर गया जहां अस्र का वक्‍त होता है ! हजरत अली ने उठकर अस्र की नमाज़ पढ़ी तो सूरज गुरूब हो गया 1

(हुज्जतुल्लाह अलल-आलमीन सफा 368 )

सबक : हमारे हुजूर की हुकूमत सूरज पर भी जारी है ! आप काइनात के हर जर्रा के हाकिम व मुख्तार हैं ।

आप जैसा न कोई हुआ न होगा और न हो सकता है !

हमारे नबीये करीम की जमीन पर हुकूमत

हुजूर सल्‍लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत सिद्दीक्‌ अकबर रजियल्लाहु अन्हु के साथ जब मक्का से मदीना की तरफ हिजरत फ़रमाई ! तो कुरैशे मक्का ने एलान किया कि जो कोई मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसललम  और उनके साथी

सिद्दीक अकबर रजियल्लाहु अन्हु को गिरफ़्तार करके लायेगा ! उसे सौ ऊंट इनाम में दिये जायेंगे ।

सुराका बिन जअशम ने यह एलान सुना तो अपना तेज़ रफ़्तार घोड़ा निकाला और उस पर बैठकर कहने लगा कि मेरा यह तेज रफ़्तार घोड़ा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसललम और अबू-बक्र का पीछा कर लेगा ! मैं अभी उन दोनों को पकड़ कर लाता हूं !

चुनांचे उसने अपने घोड़े को दौड़ाया ! थोड़ी देर में हुजूर के करीब पहुंच गया ! सिद्दीक अकबर ने जब देखा कि सुराका

घोड़े पर सवार हमारे पीछे आ रहा है ! हम तक पहुंचने ही वाला है ! तो अर्ज किया या रसूलल्लाह ! सुराका ने हमें देख लिया है

नबी मुहम्मद स.अ.व

और वह देखिए हमारे पीछे आ रहा है । हुजूर ने फरमाया : ऐ सिद्दीक ! कोई फिक्र न करो अल्लाह हमारे साथ है । इतने में सुराका बिल्कुल करीब आ पहुंचा तो हुजूर ने दुआ फरमाई  ! जमीन ने फौरन सुराका के घोड़े को पकड़ लिया

और उसके चारों पैर पेट तक जमीन में धंस गए ।

सुराका यह मंजर देखकर घबराया और अर्ज करने लगा !या मुहम्मद ! सल्लल्लाहु अलैहि वसललम  मुझे और मेरे घोड़े को इस मुसीबत से नजात दिलाइए । !मैं आपसे वादा करता हूं कि मैं पीछे मुड़ जाऊंगा ! जो कोई आपका पीछा करता हुआ आपकी तलाश में इधर आ रहा होगा उसे भी वापस ले जाऊंगा !आप तक न आने दूंगा चुनांचे हुजूर के हुक्म से जमीन ने उसे छोड़ दिया ।

सबक : हमारे हुजूर का हुक्म व फ़रमान जमीन पर भी जारी है ! और काइनात की हर चीज अल्लाह ने हुजूर के ताबे कर दिया हैं ! फिर जिस शख्स की अपनी बीवी भी उसकी ताबे न हो वह अगर हुजूर की मिस्ल बनने लगे तो वह किस क॒द्र अहमक व बेवकफ है !

हमारे नबीये करीम की दरख्तों (पेड़ो ) पर हुकूमत –

एक मर्तबा एक आराबी शख़्स ने हुजूर सललल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहा-ऐ मुहम्मद ! सल्लल्लाहु अलैहि वसललम अगर आप अल्लाह के रसूल हैं तो कोई निशानी दिखाइए ! हुजूर ने फरमाया : अच्छा तो देखो ! वह जो सामने दरख्त खड़ा है ! उसे जाकर इतना कह दो कि तुम्हें अल्लाह का रसूल बुलाता है !

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चुनांचे वह आराबी शख़्स उस दरख्त के पास गया और उससे कहा, तुम्हें अल्लाह का रसूल बुलाता है ! वह दरख्त यह बात सुनकर अपने आगे पीछे और दायें बायें पीछे गिरा ! और अपनी जड़ें जमीन से उखाड़कर जमीन पर चलते हुए

हुजूर की खिदमत में हाजिर हो गया !

अर्ज़ करने लगा अस्सलामु अलैकुम या रसूलल्लाह ! वह आराबी शख़्स हुजूर से कहने लगा अब इसे हुक्म दीजिये कि यह फिर अपनी जगह पर चला जाये। चुनांचे हुजूर ने उससे फरमाया कि जाओ ! वापस चले जाओ ! वह दरख्त यह सुनकर पीछे मुड़ गया और अपनी जगह जाकर कायम हो गया !

आराबी शख़्स यह मोजिज़ा देखकर मुसलमान हो गया ! और हुजूर को सज्दा करने की इजाजत चाही ! हुजूर ने फरमाया सज्दा करना जायज नहीं ! फिर उसने हुजूर के हाथ पैर मुबारक चूमने की इजाजत चाही तो हुजूर ने फरमाया हां ! यह बात जायज है ! उसने हुजूर के हाथ और पैर मुबारक चूम लिये !

(हुज्जतुलल्लाहु अलल-आलमीन, सफा 441 )

सबक : हमारे हुजूर का हुक्म दरख्तों पर भी जारी है ! यह भी मालूम हुआ कि बुजुर्गों के हाथ पैर चूमने जायज हैं !

हुजूर सल्‍लल्लाहु अलैहि वसललम ने इससे मना नहीं फुरमाया !

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