Fuzool Kharchi in Islam | इस्लाम में फुज़ूल खर्ची

अस्सलामु अलैकुम प्यारे प्यारे इस्लामिक भाइयों मुझको बहुत बड़े बल्कि सबसे बड़े बेवकूफ वह लोग नज़र आते हैं कि अगर उन्हें खुशहाली हाथ आई कारोबार ठीक चल गया दिन अच्छे आ गये तो होश खो बैठते हैं और सारी दौलत और कमाई शान शेखी दिखाने या अहले मुहल्ला और रिश्तेदारों को चिड़ाने जलाने या वाहवाही हासिल करने के लिये फूंक देते हैं।

खाने पीने पहनने ओढ़ने रहने सहने में खूब पुर तकल्लुफ हो जाते हैं और फिर थोड़े ही दिनों में हाथ पर हाथ रखे बैठे पैसे पैसे को परेशान नज़र आते है और फिर सैलाब का पानी एक झटके में निकल जाता है और यह मछलियों की तरह खेतों जंगलों में सड़ते नज़र आते हैं।

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मुझको ऐसे लोगों की बे वकूफी और पागलपन पर तरस आता है लेकिन जब यह आपे से बाहर होते हैं उस वक्त उन्हे कोई समझा नही पाता है और जिसकी किसमत खराब हो जिसके मुक़द्दर में ज़िल्लत व रुसवाई और दर दर की ठोकरें लिखी हों उसकी अक्ल किसी की नसीहत कबूल नही करती और बौराये हुए कुत्ते का कोई इलाज नहीं होता।

ऐसे लोगों के लिये शेख सादी ने फारसी में एक बहुत ही अच्छा शेर लिखा है जिसका मफहूम यह है

दीन वाला कभी हार में नही

अल्लाह के लिये करने वाले किसी बात की परवाह नही करते

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“वह बेवकूफ आदमी जो दिन में बे ज़रूरत काफूरी चिराग रोशन करता है तुम जल्द देखोगे कि कभी रात के वक्त उसको चिराग के लिये तेल मैय्यसर नही होगा।”

यह ऐसे कम नसीब हैं कि फुज़ूल ख़र्ची करके खुदा ऐ तआला को भी नाराज़ करते हैं और आखिरत खराब करते हैं और बर्बाद होकर दुनिया में भी परेशानी उठाते हैं। (आओ दीन पर चलें-स-126)

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