Ashura Ki Dua In Hindi | आशूरा की दुआ नमाज का तरीका हिंदी मे

अस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाही व बरकातहू 10 मुहर्रम यानी यौमे आशूरा यूमे आशूरा ये दिन बड़ा ही अफ़ज़ल दिन है ! इस दिन हमें आशुरा की दुआ आशूरा की दुआ जरूर पढ़नी चाहिए ! शबे आशूरा शबे आशूरा और यौमे आशूरा हमें अल्लाह की ज्यादा से ज्यादा इबादत करनी चाहिए ! क्यूंकि इस मुबारक दिन कोई भी नेक और जायज़ दुआ ख़ाली नहीं जाती ! यहाँ निचे हम बताने वाले है यौमे अशुरा की दुआ हिंदी मे आशूरा की दुआ हिंदी में

और आपको आशूरा की नमाज़ कैसे पढ़नी है और आशूरा की नमाज़ की नियत कैसे करनी है ! ये सब भी निचे पोस्ट मे दिया गया है

सबसे पहले हमें ग़ुस्ल करना है बाद ग़ुस्ल के हमें दो रक् अ त आशूरा की नफ्ल नमाज़ पढ़ना है !

जिसकी नियत इस तरह होगी

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आशूरा की नमाज़ की नियत

आशूरा की दुआ पढ़ने से पहले अशुरा की नमाज़ भी पढ़ी जाती है !जिसका तरीका ये है !

नियत की मेने दो रक् अ त नफ्ल नमाज़ की वास्ते अल्लाह त आला के मुँह मेरा काबे शरीफ की तरफ और अल्लाहु अकबर  कहके हाथ बाँध लेना है !

नफ्ल नमाज़ में वक़्त का नाम लेना जरुरी नहीं

आशूरा की नमाज़ का तरीका

नमाज़ में आपको दोनों रक् अ त में सुरह फातिहा के बाद सुरह इखलास 10 मर्तबा  पढ़ना है ! नमाज़ पूरी हो जाने के बाद आपको एक बार आयतुल कुर्सी पढ़ना है ! और नौ बार दुरुद इब्राहिम पढ़ना है ! और फिर आशूरा की दुआ पड़ना है ! जो इस तरह है

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मुहर्रमुल हराम महीने के 2 फ़ज़ाइल

एक शख़्स हुजूर नबिय्ये अकरम सल्लल्लाहो अलैवसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुवा और कर अर्ज की : या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैवसल्लम ! रमज़ान के इलावा मैं किस महीने में रोजे रखू ?

नबिय्ये करीम सल्लल्लाहो अलैवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया  अगर तुम ने रमज़ान के बाद किसी महीने के रोजे रखने हों तो मुहर्रम के रोजे मुहर्रम के रोजे रखो कि येह अल्लाह पाक का महीना है , इस महीने में एक दिन है जिस में अल्लाह पाक ने एक क़ौम की तौबा क़बूल फ़रमाई और दूसरों की तौबा भी क़बूल फ़रमाएगा ।

क्या माहे मुहर्रमुल हराम में रोना धोना चाहिए?

ये मुख्तसर सी तहरीर उन मुक़रिरीन व अवाम दोनो के लिये है जो झूटे वाकियात को बार बार बयान कर के लोगों को रोने पर मजबूर करते हैं और गमे हुसैन मैं जबरदस्ती रोने को सवाब समझते हैं ।

मुझे रोना नही आता तो क्या कोई ज़बरदस्ती है ?

जी जी बिल्कुल आप को रोना ही पड़ेगा , अगर नही रोये तो इस का मतलब आप को अहले बैत से मुहब्बत नहीं है ।

आप नहीं रो सकते तो हमारे पास आयें हम आप को ऐसे किस्से सुनायेंगे जिन्हें सुनने के बाद आप अपने आँसू को रोक नहीं पायेंगे और नहीं तो कुछ भी करें लेकिन रोयें ।

माहे मुहर्रम को कुछ लोगों ने माहे मातम समझ लिया है । रोना ज़रूरी है , शादी नहीं कर सकते , मुबारकबाद नहीं देनी है , गोश्त नहीं खाना है और फुलाँ नहीं छूना है …

ये सब क्या ड्रामा है ? ये ज़बरदस्ती रोने धोने का ड्रामा करने वालो को जान लेना चाहिए के किसी प्यारे की वफात पर कतई तौर पर रोना आ जाना मुहब्बत है और रहम के जज़बे का नतीजा है और ये बिल्कुल दुरुस्त और जाइज़ है लेकिन हर साल रोने रुलाने के लिए बैठ जाना एक अजीब हरकत है ।

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इस दुनिया में हर किसी की बहन भाई , माँ बाप , अवलाद और रिश्तेदार फौत होते रहते हैं , मुर्शिद वा उस्ताद फौत होते रहते हैं , इन सब के लिये इसाल -ए- सवाब का सिलसिला जिन्दगी भर जारी रहता है मगर साल के साल रोने का धंधा नहीं किया जाता ।

हज़रते अली रदिअल्लाहु तआला अन्हु रमज़ान में शहीद किये गये , हज़रते उसमान गनी रदिअल्लाहु तआला अन्हु को कई दिनों तक उन के घर में महसूर कर के और उन का पानी बन्द Pani Band करके प्यास की हालत में शहीद कर दिया गया ,

हज़रते उमर फारूक रदिअल्लाहु तआला अन्हु को मस्जिदे नबवी में नमाज़ पढ़ते हुये छुरा मार कर शहीद कर जुल्म की ये दास्तानें एक से बढ़ कर एक है । इन में से किसी एक से मौके पर हम साल के साल ना मातम करते हैं और ना रोते हैं ।

चलें सब को छोड़ दें , अहादीस में आता है कि दुनिया का सब से तारीक दिन वो था जिस दिन रहमत -ए आलम इस दुनिया से रुख्सत हुये , अगर हर साल गम मनाना और रोना रुलाना जाइज़ होता तो अल्लाह की अज़मत की क़सम रबीउल अव्वल के महीने में हर साल पूरी दुनिया में कोहराम बरपा हो जाया करता ।

अब हम हर साल मीलाद -ए- मुस्तफा की खुशी तो ज़रूर मनाते हैं मगर विसाल की वजह से ना मातम करते हैं और ना तो सिर्फ रोते हैं ।

जो लोग अहले सुन्नत पर ये इल्जाम लगाते हैं कि ये इमाम हुसैन से मुहब्बत नहीं करते , उन्हें गौर करना चाहिये कि अहले सुन्नत की हुजूर -ए- अकरम के साथ मुहब्बत को तो कोई माँ का लाल चेलेन्ज नहीं कर सकता , आखिर हुजूर के विसाल के मौके पर हम क्यों नहीं रोते ?

यहाँ से बात निखर कर सामने आ जाती है कि हर साल रोने धोने बैठ जाना एक गौर शरई हरकत है और जो लोग सुन्नी कहलाने के बावजूद हर साल ये धंधा करते हैं उन्हें रवाफिज़ का टीका लग चुका है ।

अल्लाह के प्यारों का तरीक़ा तो ये है कि प्यारों की एन वफात के दिन भी सब्रो तहम्मुल से काम लेते हैं और आँसुओं पर भी कंट्रोल रखने की पूरी कोशिश करते हैं , हाँ अलबत्ता बे इख्तियार आँसू निकल आना एक अलग बात है ।

अगर किसी को इत्तिफाकिया माहे मोहर्रम में यादें हुसैन, यादें कर्बला या कर्बला बयान सुनकर रोना आ जाये तो ऐसे रोने में कोई कबाहत नहीं लेकिन तकल्लुफ के साथ जान बूझ कर रोने धोने बैठ जाना और इसे गमे हुसैन में रोना समझ कर सवाब की उम्मीद रखना बिल्कुल गलत है ।

उम्मीद करते है की यूमे आशूरा की दुआ  इस आर्टिकल के जरिये पता चल गया होगा। और इस आर्टिकल को हर सोशल मीडिया पर सवाब की नियत से शेयर करे, अल्लाह हाफिज।

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