Salam karne ka Sunnat Tarika | सलाम करने का सुन्नत तरीका

अस्सलाम अलैकुम दोस्तों आज की पोस्ट में जानने की कोशिश करेंगे की सलाम करने का सुन्नत तरीका क्या है जो अभी मैंने आपको किया हूँ।

आज के दौर में ऐसा हो गया है की एक मुसलमान दुसरे मुसलमान भाई को देखकर भी सलाम नहीं करते है सिर्फ किसी खास मौके पर ही करते है लेकिन कोई शख्स सलाम करने की फ़ज़ीलत और फायदे जान जाए तो वह हमेशा लोगो को सलाम ही करेगा।

यह ब्लॉग पढ़ने का शख्स ज्यादा इंडिया के रहने वाला है और मै भी इंडिया का ही हूँ इसीलिए इंडिया में सभी धर्म एक साथ रहते है और सही जानकारी नहीं होने पर “नमस्ते“, “प्रणाम” इस जैसा ग्रीटिंग करते रहते है।

लेकिन इस तरह का ग्रीटिंग करना इस्लाम में हराम है क्युकी इसका मतलब आप लोग नहीं जानते है जिस दिन इसका मतलब जान जाएँगे उस दिन से इस तरह का ग्रीटिंग करना छोड़ देंगे।

कुछ इसी तरह एक और सवाल होता है क्या हम लोग गैर मुस्लिम को भी सलाम कर सकते है तो इसका जवाब है बिलकुल नहीं लेकिन गैर मुस्लिम अगर आपको सलाम करता है तब जवाब देना फ़र्ज़ है।

इसके अलावा इस्लाम ने सलाम करने का तरीका क्या बताया है जिसे सभी मुसलमानों को सीखना चाहिए जिसको सिखने के लिए इस पोस्ट को शुरू से आखिर तक पढ़ना होगा।

सलाम क्या है?

आमतौर पर जब लोग अलग अलग धर्म के लोग एक दुसरे से मिलते है तो बात शुरू करने से पहले कुछ खास लफ्जों को अदा करते है जैसे:- आदाब, नमस्ते, प्रणाम, गुड मोर्निग, गुड नाईट वगैरह।

लेकिन जब मुसलमान एक दुसरे से मिलते है तो सलाम करते है जो हदीस में आया है की अल्लाह के नबी हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया “बात करने से पहले सलाम करो” और एक दूसरी हदीस में फ़रमाया की “सलाम करो उससे भी जिसे तुम जानते हो और उस से भी जिसे तुम नहीं जानते”।

यानि तुम सलाम सिर्फ जान-पहचान वाले शख्स को ही नहीं बलके जिसको आप नहीं जानते है उसको भी सलाम करना चाहिए।

सलाम का सही अल्फाज़ क्या है?

हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने सही अल्फाज़ जो बताया है वह यह है “अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल लाही व बरकातुह” जिसका मतलब होता है “तुम पर सलामती हो और अल्लाह ता’अला की रहमत और उसकी बरकते हो”।

ग़लत सलाम:- Salamu Alaikum (سلامعليكم) / सलामु अलैकुम व रहमतुल लाही व बरकातु

सही सलाम:- Assalamu Alaikum (السلام عليكم) / अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल लाही व बरकातुह

सलाम का जवाब:- जब कोई मुस्लमान या गैर मुस्लमान आपको सलाम करे तो उसके जवाब में “व अलैकुमुस सलाम व रहमतुल लाही व बरकातुह” कहे।

सलाम का जवाब का मतलब:- तुम पर भी सलामती हो और अल्लाह की रहमत और उसकी बरकत हों।

सलाम करने का सुन्नत तरीका सिखे

सलाम करने का सुन्नत तरीका यह है कि जो आदमी सामने से आ रहा है तो वह बैठे हुए लोगों को सलाम करें और जो सवार हो यानी जो गाड़ी से हो, कार से हो या बाइक से हो, घोड़े से हो वह पैदल या बैठे हुए लोगों को सलाम करें।

लेकिन बहुत से लोगों की भीड़ में से एक ही का सलाम कहना काफी है इसी तरह ग्रुप या भीड़ या मजमा में बहुत से लोगों में से एक ही आदमी का जवाब देना भी काफी है।

अगर कोई मुसलमान दूसरे मुसलमान को सिर्फ “सलाम” कहे जिस तरह आमतौर पर गांव में लोग “सलाम साहब”, “सलाम भैया” कहते हैं इस तरह से उसे जवाब नहीं देना चाहिए बल्कि उसे बता दिया जाए कि सिर्फ सलाम करना सुन्नत नहीं है बल्कि पूरा सलाम करना चाहिए जो सुन्नत तरीका है।

औरतों का एक दूसरों को सलाम करना बेहतर है मगर किसी मर्द का जो इन औरतों को सलाम कहें मकरूह है। अगर औरत का चेहरा खुला हुआ हो इसी पोजीशन में सलाम किया जा सकता है।

नमाज़ के बाद सलाम या मुसाफा करना कैसा है?

अहले सुन्नत व जमात के मस्जिदों में देखते होंगे की हर नमाज़ के एक लम्बी कतार लाइन लगा कर खड़े हो जाते है और मुसाफा यानि सलाम करने लगते है।

इसी को बहुत सारे अलीम कहते है की ये बिद्दत हराम है ना जाने क्या क्या लोग कहते है लेकिन आप जानते है मुसाफा एक सुन्नत तरीका है और खास नमाज़ के बाद मुसाफा करना एक जायज़ काम है।

क्युकी मुसाफा करने से आपसी जो बुग्ज़, किना, हसद, दुश्मनी, नाराज़गी इस तरह की चीज़े मुसाफा की बरकत से ख़त्म हो जाती है।

हदीसो में आया है की हर वह काम जिसे मुसलमान अच्छा समझ कर करे वह अल्लाह ता’अला की नजदीक अच्छा होता है, इसका ये मतलब नहीं की कोई गुनाह का काम अच्छा करके करे।

सलाम करने के फायदे

जो बंदा पहले सलाम करता है उसके अंदर अजीजी और तवज्जो पैदा होती है और अल्लाह ताला अजीजी बन्दों को पसंद करता है।

सलाम इस तरह से करे की सलाम की आवाज़ सामने वाले के कानो को आसानी से सुनाई दे सके नहीं तो वह जवाब का हक़दार नहीं होगा उसी तरह जवाब देने वाला भी इसी अंदाज में जवाब दे के सलाम करने वाला सुन सके।

जब कोई आपसे सलाम करता है तो अदब और बेहतर ढंग से जवाब दे।

अपने रिश्तेदारों दोस्तों छोटे बड़े अनजान मुस्लिमो को सलाम करे।

सवार करने वाले और पैदल चलने वालो को भी सलाम करे।

अपने मेहरम को सलाम करे।

जब घर या मस्जिद में दाखिल होतो सभी को सलाम करे।

मुस्लिम और गैर मुस्लिम एक जगह इकटे हो तो मुस्लिम इरादे से मुलमानो को सलाम करो।

जब किसी के पास फ़ोन और मैसेज आता है तो सलाम करने के बाद बातचीत करो।

किन लोगो को सलाम करना जायज़ नहीं है

बेईमान लोगो को सलाम न तो करे और न ही उनके सलाम का जवाब दे यदि वह सलाम करता है तो सिर्फ ‘अलैक’ कहे।

जो आदमी सरेआम खुल्लम खुल्ला बुरे काम करता है ऐसे बुरे आदमी को सलाम करना मकरूह है।

जवान और अजनबी औरतो को सलाम करना जायज़ नहीं है और ना ही औरतो का जवान और अनजान से सलाम करना वाजिब है हा यदि औरत बूढ़ी है और बुजुर्ग है तो सलाम जायज है।

बिदअती को सलाम करना जायज नहीं है।

गैर मुस्लमान को सलाम करना हरम है।

अस्सलाम वालेकुम का जवाब कैसे देते हैं?

जब कोई शख्स चाहे मुस्लमान को या ना आपको सलाम करे तो उसके जवाब में “व अलैकुमुस सलाम व रहमतुल लाही व बरकातुह” जरुर कहे।

मुस्लिम लोग सलाम कैसे करते हैं?

मुस्लिम जब अपने भाई या दुसरे मुसलमान को देखते है तो बात शुरू करने से पहले सलाम करते है चाहे जिस शख्स को सलाम किया उसे जानते है या नहीं जानते।

कब्रिस्तान में सलाम कैसे किया जाता है?

जिस तरह से हम लोग किसी इन्सान को देखते है तो सलाम करते है उसी तरह कब्रिस्तान में जाने के बाद सबसे पहले कहे “अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल लाही व बरकातुह”।

सलाम वालेकुम का मतलब क्या होता है?

जब हम किसी को सलाम करते है तो उसका मतलब “तुम पर सलामती हो और अल्लाह ता’अला की रहमत और उसकी बरकते हो” होता है।

दुनिया का पहला मुसलमान कौन था?

दुनिया का सबसे पहला मुस्लमान हजरत आदम अलैहे सलाम है जिसे जन्नत से डायरेक्ट जमीन पर उतारा गया है।

सलाम अलैकुम है या अस्सलामु अलैकुम?

बहुत दुःख की बात है की कुछ लोग सलाम गलत तरीके से बोलते है लेकिन सही तरीका या है “अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल लाही व बरकातुह” और इसी तरह करना चाहिए।

आप इस्लाम में किसी को बधाई कैसे देते हैं?

इस्लाम में बधाई देने के लिए बहुत सारे तरीके है जिसमे पहले यह की हम लोग गले मिलकर करते है दूसरा माशाल्लाह बोलते है या अल्हम्दुल्लिल्लाह बोलते है या फिर सलाम करते है।

मुसलमान नमाज में सिर क्यों घुमाते हैं?

मुस्लमान जब नमाज़ खत्म करने लगते है तो सलाम करते है पहले दाये जानिब फिर बाये जानिब।

कब सलाम नहीं करना चाहिए?

नमाज पढ़ने वालो को

दिनी बातो को बयान जारी करते वक़्त

अज़ान देने वालो को

इक़ामत की अज़ान देने वालो को

खुत्बा देने वालो को

खाना खाने वालो को

पेशाब और पैखाना करने वालो को

बीवी से हमबिस्तरी करते वक़्त

जिक्र करने वालो को

जिस आदमी का सतर खुला हुआ हो

नोट:- कुछ हालातो में सलाम का जवाब देना वाज़िब नहीं लेकिन कुछ हालातो में काम को रोककर सलाम का जवाब दे सकता है और कुछ हालातो में सलाम का जवाब देना बिलकुल जायज नहीं है।

इसी तरह का इस्लामिक जानकारी सिखने और पढ़ने के लिए इस वेबसाइट को अपने दोस्तों और फॅमिली के साथ जरुर शेयर करे।

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