Islamic Calendar Ki Shuruwat Hindi Mein Jankari

अस्सलामो अलैकुम दोस्तों मुसलमान अपने कैलेण्डर (Islamic Calendar) की शुरुआत हुजूर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमा के अजीमुश्शान सफ़र से करते है ! जिसको सफ़र हिजरत से इस्लाम में याद किया जाता है !

नबीए पाक ने अल्लाह रब्बुल इज्जत के हुक्म से और दीने इस्लाम की सर बुलंदी के लिये अपने बाप दादों के इलाकाइ वतन बैतुल्लाह के पडोस को छोड़कर खजूर वाली सरज़मीन मदीना मुनव्वरा की तरफ सफर फरमाया ।

इस बारे में रिवायतें तो कई है ! मगर हज़रत अबूमूसा रदियल्लाहु तआला अन्हु की वो रिवायत ये एक सूबे के हाकिम और गवर्नर थे!

उन्होंने अमीरुल मोअमिनीन के पास खत लिखा या हज़रत उमर ने इनको ख़त लिखा ! जिसपर तारीखें नहीं लिखी हुई थी ! तो हज़रत उमर फारुक ने ये खयाल करके हुजूर के सहाबए किराम को बुलाया और उनसे मशवरा तलब फ़रमाया कि हमारी भी कोई सन् औंर तारीख़ होनी चाहिये !

मशवरा शुरु हुआ तो कुछ लोगों ने राय दी कि मुसलमानों की तारीख़ की शुरुआत पैराम्बरे आज़म सल्लल्लाहु अलैहि वसल्ला की मुकद्द्स पैदाइश से होनी चाहिये ! मगर हज़रत उमर फारुक रदियल्लाहु तआला अन्हु ने इस राय को पसंद नही फरमाया !

मजलिस में से एक राय ये भी सामने आई कि रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमा के विसाल से सन् और तारीख शुरु की जाए (Yani Islamic Calendar Ki Shuruwat Ki Jaye) ! इस बात को भी हज़रत उमर रदियल्लाहु अन्हु ने पसंद नहीं फ़रमाया ! क्योंकि

आपका विसाल सारी दुनिया के लिये और खासकर सहाबए किसम के लिये एक बडा हादसा था ! इस तरह फिर हर साल ग़म वगैरह याद आऐंगे !

इस्लामिक कैलेंडर की शुरूआत

इसलिये ये राय भी कुबूल नही फरमाई ! इसके बाद इस बात पर इक़्तेफाक हुआ कि हिजरत से तारीख़ मुकर्रर होनी चाहिये ! यानी रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमा ने मक्का मुकर्रमा से मदीनए पाक की तरफ हिजरत फरमाई वो तारीख़ तय हो !

हालांकि इस तारीख़ में बडे फायदे नज़र आ रहे थे जैसे मुसलमानो को हिजस्त के बाद कुव्वत मिलीं कि वो पूरी दुनिया पर छा गए ! हिजरत के बाद हक्को बातिल का फर्क सामने आ गया ! हिजरत के बाद कुछ इस्लामी अहकाम शुरु हुए जैसे नमाजे जुमा और ईदो की नमाज़ !

मुसलमानो को इबादत की आजादी मिली ! मक्के में मुसलमान डर डर के अल्लाह की इबादत कर रहे थे ! और मदीने में किसी का खौफ नहीं !

मदीनए पाक में मुसलमानों ने इत्मिनान का सांस लिया ! और यही से पूरी दुनिया में मुसलमानों का दबदबा छाने लगा ! इस्लाम की मुकम्मल तस्वीर लोगों के सामने आई और यहूदो नसारा भी इस मज़हबे मुहज्जब में दिलचस्पी लेने लगे !

क़ुरआने करीम का सीखने सीखाने के लिये बेहतरीन माहौल मिला ! दूसरे मज़हब वालों तक दीन की खूबियां पहुंचने लगी ! मदीना मुनव्वरा में पहली इस्लामी हुकूमत कायम हुई ! जिसके सरबराहे आला हुजूर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैंहि वसल्लमा ही थे !

सन् तो तय हुआ मगर ये मसला सामने था, कि किस महीने से इस्लामी तारीख ” की शुरुआत हो ! हज़रत अब्दुर्रह्मान बिन औफ़ रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया रजब शरीफ के महीने से ‘ इस्लामी महीने की शुरुआत हो ये रजब मुबारक महीना है और हुरमत वाले महीनों में ये महीना गिना जाता है ।

हजरत अबु तलहा रदियल्लाहु अन्हु ने रमजानुल मुबारक की राय दी ! क्यूंकि ये महीना बडी फ़ज़ीलत वाला है ! इस महीने में सुन्नत और नवाफिल का सवाब फ़र्ज़ के बराबर और एक फर्ज का सवाब 70 फ़र्ज़ के बराबर,

कुछ सहाबए किराम ने रबीउल अव्वल शरीफ की राय दी ! क्यूंकि वो सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमा की विलादते पाक का महीना है ! और अल्लाह कें रसूल ने हिजरत भी इसी महीने में फरमाई !सय्यदना हज़रत उस्माने ग़नी और हज़रत मौला अली रदियल्लाहु अन्हुमा ने मुहर्रमुल हराम शरीफ से इस्लामी महीने (Islamic Month) का आगाज़ होना चाहिये ये राय दी !

और जब ये सारी मशवरे सय्यदना हज़रत उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु ने सुने तो हजरत उमर ने इसी राय को पसंद फामग्या ! इसलिये कि हुजूर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि क्सल्लमा ने हिजरत करने का इरादा इसी महीने में फरमाया था !

क्यूंकि इससे पहले जिलहिज्जह के महीने में मदीने वालों ने आका अलैहिस्सलाम के दस्ते अक़दस पर ‘बअते उक़बए सानिया की थी ! मुहर्रम शरीफ़ में ही हज़रात सहाबए किराम को हिजरत की इजाजत मिल गई थी !

हजरत उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु ने इस मौके पर ये भी इरशाद फरमाया कि हाजी लोग हज का फरीजा अदा करने के बाद मुहर्रम ही के महीनो में अपने घरों को पहुंचते है ! इसलिये मुहर्रमुल हराम से ही इस्लामी साल की शुरुआत होनी चाहिये ! तो इसपर तमाम सहाबए किसम का इस्तेफाक हो गया !

अल्लाह का फ़ज़्लो करम हुआ कि हज़रत फ़ारुक़े आज़म जैसे एक बहुत बडे मुदब्बिर के सामने ये मसला तय हो गया ! कि हम मुसलमानो की भी तारीख है ! सन् है ! और महीना है ! अब हमे किसी गेर के दरवाजे को खटखटाने की ज़रूरत नही रहेगी !

लेकिन अफ़सोस, कितने ही मुल्को के मुसलमान खासकर हमारे मुल्क के मुसलमानों पर आज भी जनवरी और दिसम्बर संडे और मन्डे का भूत सवार है ! यहां तक कि वो अपनी इस्लामी रुसूमात शादी ब्याह मौत मय्यत और हज और कारोबारी तारीखों में भी इस्लामी सन्, तारीख और महीना नही लिखते !

कितने ऐसे मुसलमान हैं ! जिनको इस्लामी सन और तारीख याद भी नहीं ! शायद ही कुछ ही मुसलमानों को इस्लामी बारह महीनों के नाम याद हों !

कितने ही मुसलमान इस्लामी महीना, तारीख और सन् घर की औरतों से पूछ कर ही लिखते हैँ ! यही वजह रही होगी कि शादी कार्ड वगैरह में इस्लामी महीनों के सही नाम ही नहीं लिखे जाते !

यहां ये बात याद रखने की है ! कि जो कौम अपना महीना, सन् और तारीख भूल जाती है ! ज़माना उसको सदियों पीछे धकेल देता है!

हमें अपनी इस्लामी तारीखें और महीनो के नाम मय सन् के याद रखने चाहियें ! ताकि हम अपना इस्लामी तशख़खुस ( पर्सनालिटीं ) बाकी रख सकें ! मैं समझता हूं कि जिन्दा कौमों की यहीँ अलामत है

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