Isale Sawab Ki Dua | ईसाले सवाब की दुआ

अस्सलामु अलैकुम नाज़रीन ईसाले सवाब देने से पहले उसका मतलब जानना जरुरी हैं ‘ ईसाले ‘ का मतलब है “भेजना” और ‘ सवाब ‘ का मतलब है “अमल का बदला” या “वो नेक काम जिसके जरिये इंसान अल्लाह ताला की तरफ से रहमत वा मगफिरत और रसूल अल्लाह की जानिब से शफा’त का मुस्तहिक (हक) होता है।

तो मलुम हुआ के मरहूम को सवाब भेजने को शरई तौर पर ईसाले सवाब कहते हैं।

इंसान इस आरज़ी (वक़ती) ज़िंदगी में इतना मशग़ूल (मसरूफ़) हो चुका है के अपने प्यारे अज़ीज़ जो दुनिया-ए-फ़ानी से कूच (गुज़र) चुके हैं।

यानि इस दुनिया से पर्दा फरमा चुके , उन्हे भी भूल बैठा है। जबके उनके जाने वाले अपने को ही सबसे ज्यादा जरूरी है। जरूरत भी तो सिर्फ दुआ ही की है।

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यानि अपने रिश्तेदार पडोसी पहचान वाले जो इस दुनिया से जा चुके उनके लिए दुआ करना, उनसे होने वाले दुनिया में गुन्हा के लिए अल्लाह के बारगाह में दुआ करना उनके नाम से गरीबो में रिश्तेदारों में पड़ोसियों में खाना खिलाना इसी को इसाले सवाब ईसाले सवाब कहते हैं

ईसाले सवाब देने के तरीके पर 24 फज़ीलत

( 1 ) बिस्मिल्ला – ईसाले सवाब के लफ्ज़ी मा’ना हैं : “ सवाब पहुंचाना ” इस को ” सवाब बख़्शना ” भी कहते हैं मगर बुजुर्गों के लिये “ सवाब बख़्शना ” कहना मुनासिब नहीं , ” सवाब नज़ करना ” कहना अदब के ज़ियादा क़रीब है ।

इमाम अहमद रज़ा खान फ़रमाते हैं : हुजूरे  अवदस ख्वाह और नबी या वली को ” सवाब बख्शना ” कहना बे अ – दबी है बख़्शना बड़े की तरफ से छोटे को होता है बल्कि नज करना या हदिय्या करना कहे।

( 2 ) फ़र्ज़ , वाजिब , सुन्नत , नफ़्ल , नमाज़ , रोज़ा , जकात , हज , तिलावत , ना’त शरीफ़ , जिकुल्लाह , दुरूद शरीफ़ , बयान , दर्स , म – दनी काफिले में सफ़र , म – दनी इन्आमात , अलाकाई दौरा बराए नेकी की दावत , दीनी किताब का मुता – लआ , हर अच्छे काम के लिए इन्फिरादी कोशिश वगैरा हर नेक काम का ईसाले सवाब कर सकते हैं ।

( 3 ) मय्यित का तीजा , दसवां , चालीसवां और बरसी करना बहुत अच्छे काम हैं कि येह ईसाले सवाब  के ही ज़राएअ हैं । शरीअत में तीजे वगैरा के अ – दमे जवाज़ ( या’नी ना जाइज़ होने ) की दलील न होना खुद दलीले जवाज़ है

और मय्यित के लिये ज़िन्दों का दुआ करना कुरआने करीम से साबित है जो कि ” ईसाले सवाब की अस्ल है ।

तर – ज – मए कन्जुल ईमान : और वोह जो उन के बाद आए अर्ज करते हैं : ऐ  हमारे रब  ! हमें बख़्श दे और  हमारे भाइयों को जो हम से पहले ईमान लाए ।

( 4 ) तीजे वगैरा का खाना सिर्फ इसी सूरत में मय्यित के छोड़े हुए माल से कर सकते हैं जब कि सारे वु – रसा बालिग हों और सब के सब इजाजत भी दें अगर एक भी वारिस ना बालिग है तो सख्त हराम है । हां बालिग अपने हिस्से से कर सकता है ।

फरमाने मुस्तफा उस शरमा को नाकवाक आलूद हो जिस के पास मेरा जिक्र हो और बोह मुझ पर दुरुदे पाक न पढ़े। तो ये रसूल की नाराज़गी का सबब हैं

( ५ ) तीजे का खाना चूंकि उमूमन दा’वत की सूरत में होता है इस लिये अग्निया के लिये जाइज़ नहीं सिर्फ गु – रबा व मसाकीन खाएं , तीन दिन के बाद भी मय्यित के खाने से अग्निया ( या’नी जो फ़कीर न हों उन ) को बचना चाहिये ।

सुवाल : मकूला ( मय्यित का खाना दिल को मुर्दा कर देता है । ) मुस्तनद कौल है , अगर मुस्तनद है तो इस के क्या मा’ना हैं ?

जवाब : येह तजरिबे की बात है और इस के मा’ना येह हैं कि जो तआमे मय्यित के मु – तमन्नी रहते हैं उन का दिल मर जाता है , ज़िक्र व ताअते इलाही के लिये हयात व चुस्ती उस में नहीं कि वोह अपने पेट के लुक्मे के लिये मौते मुस्लिमीन के मुन्तज़िर रहते हैं और खाना खाते वक्त मौत से गाफ़िल और उस की लज्जत में शागिल ।

( 6 ) मय्यित के घर वाले अगर तीजे का खाना पकाएं तो ( मालदार न खाएं ) सिर्फ फु – करा को खिलाएं जैसा कि मक – त – बतुल मदीना की मत्बूआ बहारे शरीअत जिल्द अव्वल सफ़हा 853 पर है :

मय्यित के घर वाले तीजे वगैरा के दिन दा’वत करें तो ना जाइज़ व बिअते कबीहा है कि दा’वत तो खुशी के वक्त मश्रूअ ( या’नी शर – अ के मुवाफ़िक़ ) है न कि गम के वक़्त और अगर फु – करा को खिलाएं तो बेहतर है ।

( 7 ) आ’ला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान फ़रमाते हैं : ” यूही चेहलुम या बरसी या शश्माही पर खाना बे निय्यते ईसाले सवाब  महज़ एक रस्मी तौर पर पकाते और ” शादियों की भाजी ” की तरह बरादरी में बांटते हैं , वोह भी बे अस्ल है , जिस से एहतिराज़ ( या’नी एहतियात करनी ) चाहिये । ”

बल्कि येह खाना ईसाले सवाब और दीगर अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ होना चाहिये और अगर कोई ईसाले सवाब के लिये खाने का एहतिमाम न भी करे तब भी कोई हरज नहीं ।

( 8 ) एक दिन के बच्चे को भी ईसाले सवाब कर सकते हैं , उस का तीजा वगैरा भी करने में हरज नहीं । और जो जिन्दा हैं उन को भी ईसाले सवाब किया जा सकता है ।

( 9 ) अम्बिया व मुर – सलीन और फ़िरिश्तों और मुसल्मान जिन्नात को भी ईसाले सवाब  कर सकते हैं ।

( 10 ) ग्यारहवीं शरीफ़ और र – जबी शरीफ़ ( या’नी 22 र – जबुल मुरज्जब को सय्यिदुना इमाम जा’फरे सादिक के कूडे करना ) वगैरा जाइज़ है । कूडे ही में खीर खिलाना ज़रूरी नहीं दूसरे बरतन में भी खिला सकते हैं , इस को घर से बाहर भी ले जा सकते हैं , इस मौकअ पर जो ” कहानी ” पढ़ी जाती है वोह बे अस्ल है , यासीन शरीफ़ पढ़ कर 10 कुरआने करीम ख़त्म करने का सवाब कमाइये और कुंडों के साथ साथ इस का भी ईसाले सवाब कर दीजिये ।

( 11 ) दास्ताने अजीब , शहज़ादे का सर , दस बीबियों की कहानी और जनाबे सय्यिदह की कहानी वगैरा सब मन घड़त किस्से हैं , इन्हें हरगिज़ न पढ़ा करें । इसी तरह एक पेम्फलेट बनाम ” वसिय्यत नामा ” लोग तक्सीम करते हैं

जिस में किसी “ शैख़ अहमद ” का ख्वाब दर्ज है येह भी जा’ली ( या’नी नक्ली ) है इस के नीचे मख्सूस ता’दाद में छपवा कर बांटने की फजीलत और न तक्सीम करने के नुक्सानात वगैरा लिखे हैं उन का भी ए’तिबार मत कीजिये ।

( 12 ) औलियाए किराम की फ़ातिहा के खाने को ता जीमन ” नो नियाज ” कहते हैं और येह तब क है , इसे अमीर व गरीब सब खा सकते हैं ।

( 13 ) नियाज़ और ईसाले सवाब के खाने पर फ़ातिहा पढ़ाने के लिये किसी को बुलवाना या बाहर के मेहमान को खिलाना शर्त नहीं , घर के अपराद अगर खुद ही फ़ातिहा पढ़ कर खा लें जब कोई हरज नहीं।

( 14 ) रोज़ाना जितनी बार भी खाना हस्बे हाल अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ खाएं , उस में अगर किसी न किसी बुजुर्ग के ईसाले सवाब की निय्यत कर लें तो खूब है । म – सलन नाश्ते में निय्यत कीजिये : आज के नाश्ते का सवाब सरकारे मदीना और आप के जरीए तमाम अम्बियाए किराम को पहुंचे दो पहर को निय्यत कीजिये : अभी जो खाना खाएंगे ( या खाया ) उस सवाब सरकारे गौसे आज़म और तमाम औलियाए किराम को पहुंचे , रात को निय्यत कीजिये :

अभी जो खाएंगे उस का सवाब इमामे अहले सुन्नत इमाम अहमद रज़ा ख़ान और हर मुसल्मान मर्द व औरत को पहुंचे या हर बार सभी को ईसाले सवाब  किया जाए और येही अन्सब ( या’नी ज़ियादा मुनासिव ) है ।

याद रहे ! ईसाले सवाब सिर्फ उसी सूरत में हो सकेगा जब कि वोह खाना किसी अच्छी निय्यत से खाया जाए म – सलन इबादत पर कुव्वत हासिल करने की निय्यत से खाया तो येह खाना खाना कारे सवाब हुवा और उस का ईसाले सवाब हो सकता है ।

अगर एक भी अच्छी निय्यत न हो तो खाना खाना मुबाह कि इस पर न सवाब न गुनाह , तो जब सवाब ही न मिला तो ईसाले सवाब कैसा ! अलबत्ता दूसरों को ब निय्यते सवाब खिलाया हो तो उस खिलाने का सवाब ईसाल Isale Sawab In Hindi हो सकता है ।

( 15 ) अच्छी अच्छी निय्यतों के साथ खाए जाने वाले खाने से पहले ईसाले सवाब  करें या खाने के बाद , दोनों तरह दुरुस्त है ।

( 16 ) हो सके तो हर रोज़ ( नफ्अ पर नहीं बल्कि ) अपनी बिक्री  का चौथाई फीसद ( या’नी चार सो रुपै पर एक रुपिया ) और मुला – जमत करने वाले तन – ख्वाह का माहाना कम अज़ कम एक फ़ीसद सरकारे गौसे आजम की नियाज़ के लिये निकाल लिया करें , ईसाले सवाब  की निय्यत से इस रकम से दीनी किताबें तक्सीम करें या किसी भी नेक काम में खर्च करें इस की ब – र – कतें खुद ही देख लेंगे ।

( 17 ) मस्जिद या मद्रसे का कियाम स – द – कए जारिय्या और ईसाले सवाब का बेहतरीन जरीआ है । ( 18 ) जितनों को भी ईसाले सवाब करें अल्लाह की रहमत से उम्मीद है कि सब को पूरा मिलेगा , येह नहीं कि सवाब तकसीम हो कर टुकड़े टुकड़े मिले । ईसाले सवाब  करने वाले के सवाब में कोई कमी वाकेअ नहीं होती बल्कि येह उम्मीद है कि उस ने जितनों को ईसाले सवाब किया उन सब के मज्मूए के बराबर इस ( ईसाले सवाब करने वाले ) को सवाब मिले । म – सलन कोई नेक काम किया जिस पर इस को दस नेकियां मिलीं अब इस ने दस मुर्दो को ईसाले सवाब  किया तो हर एक को दस दस नेकियां पहुंचेंगी जब कि ईसाले सवाब करने वाले को एक सो दस और अगर एक हज़ार को ईसाले सवाब  किया तो इस को दस हज़ार दस । ( और इसी कियास पर )

( 19 ) ईसाले सवाब सिर्फ मुसल्मान को कर सकते हैं । काफ़िर या मुरतद को ईसाले सवाब Esal e Sawab करना या उस को ” महूम ” , जन्नती , खुल्द आशियां , बेंकठ बासी , स्वर्ग बासी कहना कुफ़ है ।

( 20 ) मक्बूल हज का सवाब – जो ब निय्यते सवाब अपने वालिदैन दोनों या एक की कब्र की ज़ियारत करे , हज्जे मक़बूल के बराबर सवाब पाए और जो ब कसरत इन की क़ब्र की जियारत करता हो , फ़िरिश्ते उस की क़ब्र की ( या’नी जब येह फौत होगा ) जियारत को आएं ।

( 21 ) दस हज का सवाब – जो अपनी मां या बाप की तरफ़ से हज करे उन ( या’नी मां या बाप ) की तरफ़ से हज अदा हो जाए . इसे ( या’नी हज करने वाले को ) मजीद दस हज का सवाब मिले ।

जब कभी नफ्ली हज की सआदत हासिल हो तो फ़ौत शुदा मां या बाप for parents की निय्यत कर लीजिये ताकि उन को भी हज का सवाब मिले , आप का भी हज हो जाए बल्कि मजीद दस हज का सवाब हाथ आए । अगर मां बाप में से कोई इस हाल में फ़ौत हो गया कि उन पर हज फ़र्ज़ हो चुकने के बा वुजूद वोह न कर पाए थे तो अब औलाद को हज्जे बदल का शरफ़ हासिल करना चाहिये

” हज्जे बदल ” के तप्सीली अहकाम के लिये दा’वते इस्लामी के इशाअती इदारे मक – त – बतुल मदीना की मत्बूआ किताब ” रफ़ीकुल ह – रमैन ” का सफ़हा 208 ता 214 का मुता – लआ फ़रमाइये ।

( 22 ) वालिदैन की तरफ़ से खैरात – जब तुम में से कोई कुछ नफ़्ल खैरात करे तो चाहिये कि उसे अपने मां बाप की तरफ़ से करे कि इस का सवाब उन्हें मिलेगा और इस के ( या’नी खैरात करने वाले के ) सवाब में कोई कमी भी नहीं आएगी ।

( 23 )  रोज़ी में बे ब – र – कती की वह बन्दा जब मां बाप के लिये दुआ तर्क कर देता है उस का रिज्क कृत्अ हो जाता है ।

( 24 ) जुमुआ को ज़ियारते क़ब्र की फ़ज़ीलत – जो शख्स जुमुआ के रोज़ अपने वालिदैन या इन में से किसी एक की क़ब्र की जियारत करे और उस के पास सूरए यासीन पढ़े  बख्श दिया जाए ।

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ईसाले सवाब के लिए दुआ

بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ ۝

1 Bismi l-lāhi r-raḥmāni r-raḥīm

ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَۙ ۝‎

2 ’al ḥamdu lil-lāhi rab-bi l-‘ālamīn

ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِۙ ۝‎

3 ’ar raḥmāni r-raḥīm

مَٰلِكِ يَوْمِ ٱلدِّينِۗ ۝‎

4 Māliki yawmi d-dīn

إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُۗ ۝‎

5 ’iy-yāka na‘budu wa’iy-yāka nasta‘īn

ٱهْدِنَا ٱلصِّرَٰطَ ٱلْمُسْتَقِيمَۙ ۝‎

6 ’ihdinā ṣ-ṣirāṭa l-mustaqīm

صِرَٰطَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْۙ غَيْرِ ٱلْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا ٱلضَّآلِّي ࣢

7 Ṣirāṭa l-lazīna ’an‘amta ‘alayhim, ghayri l-maghḍūbi ‘alayhim wala ḍ-ḍāl-līn

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