Ramzan Ki Barkat Wa Fazilat | रमजान की बरकत व फ़ज़ीलत हिंदी में

Ramzan Ki Barkat Wa Fazilat माहे रमजान की बरकत व फ़ज़ीलत हिंदी में Ramzan ki Barkat in hindi अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाह वबरकाताहु नाजरीन ए एकराम रमजान की फ़ज़ीलत का आप इस बात से अंदाज़ा लगा सकते है की रमजान के महीने में जहन्नुम का दरवाजा बंद कर दिया जाता है और जन्नत का दरवाजा खोल दिया जाता है रोज़ा लगभग हर अल्लाह के नबियों पर फ़र्ज़ था इसलिए अल्लाह तआला कुरआन पाक में फ़रमाया है की अय ईमान वालो जिस तरह हर नबी पर रोज़ा फ़र्ज़ किया गया है उसी तरह हर एक मोमिन पर भी फ़र्ज़ किया गया है | आप शब्बे ए बारात की रात की फ़ज़ीलत को Shab E Barat Ki Raat Ki Fazilatजरूर पढ़ें  also download Current Affairs, PDF, Study, Materials, Railways, Etc: Clich This website Sarkarijobseva.com

 Ramzan Ki Barkat Wa Fazilat 

बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम

रोजा हमसे क्या मुतालबा करता है दोस्तों बुजुर्गो और अजीजाने एकरामी कौन मुसलमान ऐसा होगा जो रमजान की महीने की अजमत और बरकत से वाकिफ न हो अल्लाह तआला ने इस महीने को सिर्फ इबादत के लिए बनाया है और नामुलुम क्या क्या रहमतें अल्लाह तआला इस महीने में अपने बन्दों के तरफ मकजूल फरमाते है हम और आप इन रहमतों का तस्सबुर भी नहीं कर सकते है इस महीने के अंदर बाज़ अमाल ऐसे है जिसको हर मुसलमान जानता है और उसपर अमल भी करता है मसलन के रोजा रखना फ़र्ज़ है और तरावी सुन्नत है रोज़ा एक इबादत है|

इस्लामिक कलेण्डर के मुताबिक नवां महीना रमजान का पाक महीना होता है जिसे दुनिया भर के मुसलमान रोजा रख कर मनाते है रोजा हमारे बिमारियों का इलाज़ भी है और यही रोज़ा रोजदारों को कयामत के दिन उनके सामने ढाल बन कर खड़ा रहेगा और उस शख्स को जहनुम में जाने से बचाएगा | रमजान में हर मुसलमान पर रोजा रखना फ़र्ज़ है ठीक उसी तरह जैसे पांच वक़्तों की नमाज़ है |

तरावी रमजान के महीने में पढ़े जाने वाली नमाज़ जिसे तरावी कहते है जो 20 रकत की होती है इसमें पूरा कुरआन शरीफ सुना जाता है इस इबादत की नफिल इबादत की सुन्नतें मुअक्किदा कहा जाता है जान बूझकर तरावी की नमाज़ को छोड़ना बहुत बड़ा गुनाह है अगर आपके साथ किसी तरह की मज़बूरी है जैसे आपको बुढ़ापे की कमजोरी है या आप किसी बीमारी हालत से गुजर रहे है या आप सफर कर रहे है उनके लिए छूट है रमजान में पुरे महीने तरावी पढ़ने का हुक्म है|

रोजा रखने की फ़ज़ीलत

Ramzan Ki Barkat 30 रमजानुल मुबारक को दस दस दिनों के तीन हिस्सों में बाँट दिया गया है (1) पहला दस दिनों का हिस्सा अशरे रहमत का है इस पाक अशरे में खूब ज्यादा से ज्यादा इबादत कर अल्लाह के रहमतों से माला माला हो जाए अल्लाह की सबसे ज्यादा रहमतें इसी अशरे में बरसता है |

दूसरा अशरा मगफिरत और तीसरा अशरा निजात का अशरा है इस पाक महीने में एक नफिल का अजरो सवाब फ़र्ज़ के बराबर है और फ़र्ज़ का सवाब 70 गुना हो जाता है इस पाक महीने में मक्का शरीफ में नमाज़ अदा करना एक लाख नमाज़ अदा करने के बराबर है इस पाक महीने में बहुत से लोग उमरा करने सऊदी अरब जाते है रोजा और नमाज़ के अलावा इस पाक महीने में कुरआन की तिलावत भी करें अल्लाह तआला को कुअरान की तिलावत और तिलावत सुनने वाले लोग भी बहुत ज्यादा पसंद है |

रमजानुल मुबारक की अहमियत

इस्लाम मजहब में पांच अरकानों में रोजा भी एक अरकान है रमजान ही वो पाक महीना जिसमे अल्लाह तआला ने अपनी पाक किताब यानि कुरआन ए करीम को अपने बन्दों की रहनुमाई के लिए इस जहाँ में नाजिल किया इसी रमजान के महीने में अल्लाह तआला दोजख के दरवाजे को बंद कर देता है और जन्नत के दरवाजे को खोल देता है और इसी पाक महीनो में सैतानो को जंजीरो में जकड कैद कर लिया जाता है |

रोजा किस किस पर फ़र्ज़ है

रोजा रखना हर मर्द व औरत तंदुरुस्त शख्स पर साल में एक माह माहे रमजान में रोजा रखना फ़र्ज़ है जो मोमिन रोजा नहीं रखता है वो अल्लाह तआला के रहमतों से महरूम रहजाता है राजा न रखने पर मानो की वो शख्स अल्लाह तआला की न फ़रमानी कर रहा हो और उस शख्स के लिए वो गुनाहे कबीरा है |

रोज़ा में न बुरा करे न सुने

रोजा रखने के दरमियान बुरा सोचना बुरा सुन्ना भी गुनाह माना जाता है इस पाक महीने में मुसलमानो में परहेजदारी पैदा करने का बहुत अच्छा जरिया है इस महीने में मुसलमान सिर्फ और सिर्फ अल्लाह तआला के राजा के लिए अपने सोने खाने के वक़्तों में तबदीली करता है रोजेदार भूखा प्यासा रहता है पर खाने पिने के चीजों पर नजर नहीं डालता है रमजान के महीने को मुसलमानो का सब्र का महीना भी कहा जाता है|

रोजे की हालत में इन चार चींजों को ध्यान में रखें

1.पहला रोजा रखने के दरमियान सिर्फ भूखे प्यासे ही रहना काफी नहीं है बल्कि कोई भी शख्स जीभ कान नाक हाँथ का गलत इस्तेमाल न करें यानी ये की न लड़ाई झगड़ा न बुरा देखे और न बुरा सुने |

2. दूसरा रोजा रखने के दरमियान कोई भी शख्स सेहरी के बाद और इफ्तार करने तक खाना पीना न करें और न उनके बारे सोंचे |

3. तीसरा रोजा का सबसे अहम् पहलु शेहरी है शेहरी का मतलब सुबह होता है शेहरी के दरमियान सभी रोजा रखने यानि रोजेदार फज़र के नमाज़ से पहले शेहरी करते खाते है शेहरी खाने के बाद रोज़ा रखने की नियत यानि दुआ पढ़ते है तभी अल्लाह तआला उनके रोजे को कुबूल करता है |

शेहरी करने की बाद की नियत

व बि सोमि गदिन नवई तु मिन शहरि रमजान

नियत का तर्जुमा: मैंने माहे रोज़ा की कल का नियत की है

4. चौथा रोज़ा रखने के दरमियान ऐसे पांच बातों को करना रोज़ा टूट जाता है पहला किसी से झूठ बोलना दूसरा किसी का बदनामी करना तीसरा किसी का बुराई करना यानि चुगली करना चौथा किसी का त्झूठा कसम खाना और पांचवां और आखिरी लालच माखेज करना |

हमने आपके आसानी के लिए यहाँ निचे रोजा खोलने यानी के इफ्तार करने की दुआ को भी हिंदी के सरल भासा में दिया है जिसे आप जरूर पढ़ें और याद करलें |

इफ्तार करने की दुआ

अल्लाहुम्म लका सुम्तु व अला रिज़क़िका अफतरतू 

रोजा खोलने की दुआ का तर्जुमा : ऐ अल्लाह तआला. मैंने तेरी रजा के लिए रोजा रखा और तेरी ही रिजकक पर इफ्तार रोजा किया.

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