Ilm Hasil Karne Ki Dua | इल्म हासिल करने की दुआ

अस्सलामु अलैकुम मेरे प्यारे अजिज भइओ बहनो इल्म की अहमियत और फ़ज़ीलत के ताल्लुक से यूँ तो अल्ल्लह रब्बुल इज़्ज़त ने क़ुरान मे कई आयते नज़िल कि हैं, इंशाअल्लाह कुछ का ताज़किरा हम इस आर्टिकल मे करने की कोशिश कर रहे हैं।

रसूल अल्लाह सल्लाहु अलैहि वसल्लम पर पहली वही नज़िल होती है, सूरह अलक (96) की इब्तेदाई 5 आयते आप पर नज़िल होती है। “इकरा’ बिस्मी रब्बी अल-लधि खलक” (पढ़ अपने रब के नाम से जिस ने पैदा किया)

जब फरिश्ते जिबरइल (अलैही सलाम) आए और ऱसूलाल्लह से कहा: “इक़्रा! (पढ़ो)” तो आप (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा: “मा आना’बी क़ारी ! (मैं पढ़ना लिखना नही जनता)” फिर उस आवाज़ ने जोरदार कहा: “इक़्रा!” तो आप (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) समझ गये के ये बोलना चाह रहे है के ‘इसके पीछे पढ़ो’ यानी इसकी बातो को दोहराव।

तब अल्लाह के रसूल (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उनके पीछे पढ़ना शुरू किया: “इक़्रा’ बिस्मी रब्बीका अल-लधि खलक़ा.” यानी पढ़ अपने रब के नाम से जिस ने पैदा किया. बस पहला हुक्म यही आया।

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पढ़ो अपने रब के नाम से जिसने पैदा किया

तो यहा रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर देखिए पहली वही क्या नज़िल होती है. नमाज़ नही, ज़कात नही, खुद अपनी तौहीद ( वहदानियत ) अल्लाह बयान नही कर रहा सिर्फ़ यही पहला हुक्म दे रहा है के “पढ़ अपने रब के नाम से”

तो जिस क़ौम को पहला हुक्म पढ़ने का आए और वोही क़ौम अगर जाहिल रह जाए यह गोया ऐसे ही है जैसे मछली का बच्चा तैरने के फन से गाफील हो जाए, यक़ीनन इल्म बुनियाद है तमाम आमाल की, क्यूंकी बंदा उन्ही अक़ैद पर अपनी ज़िंदगी गुज़रता है जिसका इल्म उसे विरासत मे मिला हो. इसलिए अक़ैद मे साबित कदम रहने के लिए सबसे अव्वल चीज़ इल्म है. और इल्म से मुराद दीनी और दुनियावी दोनो है।

जाहिर सी बात है के कोई शख्स अगर कयनात का इल्म (अस्ट्रॉनमी) हासिल करे तो वो उस चीज़ पर गौर-ओ-फ़िक्र करने लगता है के यक़ीनन इतनी बड़ी कयनात को किसी पत्थर और मिटी के माबूदों ने तो नही बनाया होगा. यक़ीनन वो बहुत आला शान होगी जिसने इस क़ायनात को बनाया, वजूद मे लाया और आगे की आयतो मे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने बयान फरमाया।

खलक़ा अल-‘इंसाना मीं अलक़िन

जिसने इंसान को खून के लॉथरे से पैदा किया

अकरा’ वा रब्बुका अल-‘आक्रामु

पढ़ उस रब के नाम से जो बड़ा करम करने वाला है

अल-लधि `अल्लामा बिल-क़लामी

जिसने इंसान को क़लम के ज़रिए (इल्म) सिखाया

अल्लामा अल-‘इंसाना मा लाम या`लाम

जिसने इंसान को वो सिखाया जो वो (इंसान) नही जनता था

तो इन आयतो मे पता चलता है के इल्म की क्या अहमियत और फ़ज़ीलत है, और मुसलमानो की आनेवाली नस्लो ने बस. हर इल्म को चाट दिया, हर इल्म को पी गये, अपने रब का नाम लिया और हासिल कर लिया उसे.

बस फिर मुसलमानो की आनेवाली नस्लो ने अपने रब्ब का नाम लेकर ऐसा इल्म हासिल किया जो रहती दुनिया तक लोगों के लिए फयदेमंद साबित हुआ. फिर चाहे वो शरीयत का इल्म हो या फिर दुनियावी इल्म, (रिलिजियस नालेज ओर यूनिवर्सल नालेज) बिना तफ्रीक और फ़र्क किए रब का नाम लेते और हर उलूम को पढ़ लेते।

और ना सिर्फ़ पढ़ते बल्कि हर उलूम मे महारत हासिल कर ली, बल के इन्होने कई नये उलूम और फन दुनिया को दिए और बताया यह होता है नालेज यह होता है इल्म इसी तरहा क़ुराने माजिद मे अल्लाह ता’आला फरमाता है।

अल्लाह ता’आला, फरिश्ते और अहल-ए-इल्म इस बात की गवाही देते है के अल्लाह के सिवा कोई माबूद नही और वो अदल को क़ायम रखने वाला है उस ग़ालिब और हिकमत वाले के सिवा कोई इबादत के लायक़ नही।

तो इस आयात मे अल्लाह ता’आला ने यह कहा के: “अल्लाह गवाही देता है के वो(अल्लाह) एक है.”

फिर फरिश्ते गवाही देते है के “वो(अल्लाह) एक है.”

और अहले इल्म का मक़ाम बताया गया है, के अहले इल्म को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फरिश्तो के बाद गिनवा रहा है इस लिए के यह गवाही देते है के क़ायनात का रब, वो अल्लाह एक है।

और ज़ाहिर सी बात है के इल्म वाले इसलिए गवाही देते है क्यूंकी वो इल्म हासिल करते है, सीखते है, वो जानते है के यक़ीनन इस क़ायनत को बनाने वाला कोई एक माबूद है वो एक ही है, और अगर एक से ज़्यादा होते तो क़ायनत का निज़म चल ही नही सकता।

तो यहा भी इस आयात मे इल्म वालो की फ़ज़ीलत पता चल रही है के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त कहता है के ये गवाही देते है उस रब्ब के (यानी अल्लाह) के एक होने की।

एक और आयात मे इल्म वालो के ताल्लुक से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त फरमाता है

अल्लाह से उसके वोही बंदे डरते हैं जो इल्म रखते हैं

ज़ाहिर सी बात है, आज हमने अल्लाह का डर (तक़वा) इकतियार नही किया इसलिए के हम इल्म ही नही रखते उसके ताल्लुक से, ना जानते है उसने क्या दिया, ना जानते है हमारे लिए उसने क्या किया , ना जानते है के वो हमसे क्या चाहता है, बस ज़िंदगी गुज़ार रहे है, तो कहाँ से अल्लाह का डर, वो तक़वा आएगा।

जबके अल्लाह फरमाता है के उसका तक़वा, उसकी फ़रमादरी वोही बंदे करते है जो उसके ताल्लुक से इल्म रखते है।

इल्म मे बरकत के लिए बेहतरीन दुआ

आए नबी दुआ कीजिए अपने रब्ब से के) आए अल्लाह मेरे इल्म मे इज़ाफा कर

ये हुक्मी आयात है और अंदाज़ा लगाइए के नबी-ए-करीम (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) को हुक्म आ रहा है के आप अपने रब से इल्म की बरकत के खातिर दुआ कीजिए. जब उस ज़ात को हुक्म आ रहा है जिसे अल्लाह अपने गायब का इल्म आता करता है तो बदर्जे उलूला

हमारे से यह आयात ज़्यादा खिताब कर रही है के तुम तो ज़्यादा हासिल करो तो गोया अल्लाह की ज़ात सिरचश्मा है इल्म का, अल्लाह की ज़ात सोर्स ऑफ नालेज है। लिहाजा अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने अपने बंदों को दुआ सिखलाई के माँगो अपने रब से के वो तुम्हारे इल्म मे इज़ाफा कर दे।

क्या अहले इल्म और जाहिल बराबर हो सकते है ?

इस ताल्लुक से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मे एक जगह फरमाता है

Hal Yastawil Lazeena Ya lamoona Wallazeena Laa Ya lamoon

ये दुआ : हाल यसतविल लाज़ीना या लामूना वल्लाज़ीना ला या लामून

आए नबी (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) ! वो लोग जो इल्म रखते है और जो लोग इल्म नही रखते क्या दोनो बराबर हो सकते है ?

इस आयात मे अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त इल्म वालो की फ़ज़ीलत बयान कर रहा है के – क्या अहले इल्म और जाहिल दोनो बराबर हो सकते? नही, लिहाजा इल्मवालो के दरजात है अल्लाह के पास, तो इल्म हासिल करने से इंसान को फ़ज़ीलत हासिल होती है, उसके दरजात बुलंद होते है।

और क्यू ना हो ? दुनिया मे हम एक दूसरे की इज़्ज़त क्यू करते है? चाहे दीनी हल्को मे हो या दुनियावी, हल्को मे : टीचर है, प्रिन्सिपल है,डॉक्टर है, वकील है और दीनी हल्को मे : उस्ताद है, मुफ़्ती है, आलिम है, हाफ़िज़ है, क़ारी है यक़ीनन यह इल्म ही तो है जिसकी बुनियाद पर इंसान को इज़्ज़त और रुतबा मिलता है दुनिया मे तो मालूम हुआ के इल्म कोई भी हो वो इज़्ज़त और मर्तबा लता है,और अगर दुनियावी इल्म शराई (दीनी) इल्म के साथ मिल जाए तो सोने पर सुहागा हो जाता है।

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इल्म इंसान के दरजात को बुलंद करता है

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मे एक जगह फरमाता है

“ Yarfa Allāhu Al-Ladhīna Amanu Minkum Wa Al-Ladhīna Utu Al-Ilma Darajatin “

ये दुआ : “ यरफ़ा अल्लाहु अल लाधिना अमानु मिंकूम व अल लाधिना उतु अल इल्मा दरजातिन “

(अल्लाह यक़ीनन उन् लोगों को जो तुम’मे से ईमान लाए और जिन्होने इल्म हासिल किया उनके दरजात बुलंद करके रहेगा)

तो इस आयात मे भी पता चला के जो लोग ईमान लाए और फिर इल्म हासिल किया यह दोनो चीज़े वजह बनती है इंसान के दरजात बुलंद होने की और वो सहबा जो ईमान लाए, जो रसूल’अल्लाह के साथ रहकर इल्म-ए-दीन सीखा आज उनका मुक़ाम, उनका अहतराम, उनकी इज़्ज़त दीगर सहबा के मुक़ाबले मे मुमताज़ है, उँची है, और वो ज़्यादा नाम लिए जाते है, तो इस आयात से भी पता चला के यह इल्म ही है जो इंसान के दरजात को बुलंद करता है

इल्म हासिल करना किस पर फ़र्ज़ है ?

मफहूम-ए-हदीस है के रसूल’अल्लाह (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया: इल्म का हासिल करना तमाम मुसलमान मर्द और औरत पर फ़र्ज़ है।

गौर करने वाली बात है के यहा लफ्ज़ देखिए तलब है जिसका माना होता है किसी चीज़ को हासिल करने की कोशिश करना गोया आप उसे हासिल ना कर पाए, फिर चाहे वो आपको ज़िंदगी के 90 साल को भी मिल जाए आप उस (इल्म की जूसतजू) मे ज़रूर लगे रहेंगे।

यानी इल्म हासिल करने की कोई लिमिट नही है. फिर चाहे आप जब भी अपनी ज़िम्मेदारियों से फारिग हो जाओ, इल्म के लिए अपने जहाँ हमेशा खुले रखे।

लिहाजा हमे चाहिए के हर हाल मे इल्म हासिल करे. शराई इल्म और कौने नी इल्म (रिलिजियस नालेज आंड यूनिवर्सल नालेज)

फिर इन’शा’अल्लाह हर किस्म का जायज़ इल्म हमे अपने रब की तरफ रूजू करवाएगा।

इन’शा’अल्लाह-उल-अज़ीज़ अल्लाह ता’आला हमे कहने सुनने से ज़्यादा अमल की तौफ़ीक़ दे।

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