कुर्बानी की दुआ पढने का तरीका हिंदी अंग्रेजी अरबी में

अस्सलामु अलैकुम नाजरीन आज हम इस पोस्ट में बात करेंगे क़ुरबानी की दुआ (qurbani ki dua) के बारे में और साथ ही (qurbani ki dua in hindi) के बारे में और ये भी बताएँगे की क़ुरबानी देना इस्लाम में कियों जरुरी है आप इस पोस्ट को पूरा पढ़ें इन्शाह अल्लाह आपको क़ुरबानी के बारे में मुकम्मल जानकारी हो जाएगा |

क़ुरबानी देना इस्लाम में कियों जरुरी है

कुरान ए करीम में हज़रत इब्राहिम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कुर्बानी के बारे में उल्लेख है और यह बताया जाता है कि उन्होंने अपने बेटे इस्माईल की कुर्बानी दी थी। इसलिए, कुर्बानी अल्लाह के राह में जिब्हा करने का एक संकेत है और इसको मुस्लिम समुदाय में सुन्नत के रूप में माना जाता है। कुर्बानी करने से इंसान का अल्लाह के साथ ताल्लुक मजबूत होता है और उसकी मनमानी शुरूआत की जाती है ताकि उसे अल्लाह के हुक्मों पर अमल करना सीखाया जा सके।

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हजरत इब्राहिम अलैहि सलाम के लिए उनका बेटा इस्माइल अलैहि सलाम उनके लिए सबसे प्यारा था। लेकिन उन्हें खुशी हुई कि अल्लाह तआला ने उन्हें उनकी परवरिश के बदले में एक बेहतरीन बकरे की बलि देने के लिए हुक्म दिया था जो कि इस्माइल अलैहि सलाम को उनकी जगह दी जाएगी। यह एक बड़ी परीक्षा थी जो हजरत इब्राहिम अलैहि सलाम ने आसानी से नहीं ली, लेकिन वो इस परीक्षा में सफल रहे और उन्होंने अल्लाह के राह में कुर्बानी का काम किया। इसलिए, कुर्बानी करना इस्लाम में बड़ी महत्वपूर्णता रखता है।

इस्माइल अलैहि अस्सलाम की कुर्बानी देना इब्राहिम अलैहि सलाम के लिए एक बहुत बड़ी इम्तिहान था। लेकिन उन्होंने अपनी नियत में अल्लाह के हुक्म को अपने जेहन में रखा और अल्लाह जिससे राजी हो इस बात की नियत रखते हुए अपने एकलौते लाडले इस्माइल अलैहि अस्सलाम को क़ुर्बान करने का फैसला किए यह एक बड़ी मिसाल है इंसानियत के लिए कि इंसान को हमेशा अपने अल्लाह का हुक्म मानना चाहिए और उसके निर्देशों के अनुसार चलना चाहिए।

इस्माइल अलैहि वसल्लम ने अपने पिता हजरत इब्राहिम अलैहि वसल्लम के फैसले को खुशी से स्वीकार किया और तैयार हो गए। इस्माइल अलैहि वसल्लम की ये तैयारी भी एक उन्नत इबादत है जो इस्लाम में सदियों से संचालित होती आई है।

हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम ने अपने बेटे इस्माइल अलैहि सलाम को कुर्बानी के लिए तैयार किया था और उन्होंने इस काम को पूरा करने के लिए अपने बेटे को किबला की तरफ लिटाया और उनकी गर्दन पर छुरी फेरी। लेकिन फिर अल्लाह ताआला ने एक दुंबा भेजा जिससे बकरे के बजाय एक बड़ा भेड़ आया और उसे कुर्बान किया गया। अल्लाह ताअला ने फरमाया की ए इब्राहिम मै तुम्हारा इम्तिहान लेना चाहता था।

और अल्लाह ताअला ने इब्राहिम अलैहि वसल्लम को दुंबा जिब्हा करने के लिए फरमाया इसी तरह हज़रत इब्राहिम अलैहि वसल्लम ने जो अल्लाह के लिए जज्बा और मुहब्बत दिखाया इसे देख कर अल्लाह तबारक व तआला ने क़यामत तक हर मुसलमान पर क़ुर्बानी सुन्नत करार दिया |

क़ुरबानी की दुआ हिंदी

जानवर को बाए पहलु पर इस तरह लिताये की किबिल की तरफ उसका मुह हो या दहिना पंव उसके पहलु पर रख कर यह दुआ पढ़े

ये दुआ पढ़े फिर ज़िबह करे

इन्नी वज्जहतु वजहि य लिल्लज़ी फ़ त रस्मावाति वल अर्दा हनीफँव व् मा अ न मिनल मुशरिकीन इन न सलाती व नुसुकी मह्या य व ममाती लिल्लाहि रब्बिल आलमीन * ला शरी क लहू व बि ज़ालि क उमिरतु व अ न मिनल मुस्लिमीन * अल्लाहुम्मा ल क व मिन क बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर *

फिर यह दुआ पढ़े

* अल्लाहुम्मा तकब्बल मिन्नी कमा तकब्बलता मिन ख़लीलिक इबराहीमा अलैहिस्सलामु व हबीबिक मुहम्मदिन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम *

अगर किसी व्यक्ति ने अपनी तरफ से क़ुरबानी की हो तो वो नाम ले सकते हैं, जैसे कि “अल्लाहुम्मा तकब्बल मिन मुश्ताक” यानी “अल्लाह हमारी क़ुरबानी को स्वीकार करें जो हमने की है”. इसी तरह अगर कोई दूसरे की तरफ से क़ुर्बानी करते हैं तो उन्हें दूसरे व्यक्ति का नाम लेना चाहिए, जैसे “अल्लाहुम्मा तकब्बल मिन महमूद”.

जब दो या दो से अधिक व्यक्ति एक साथ कुर्बानी करते हैं तो वे सभी शरीक होते हैं और उनके लिए “अल्लाहुम्मा तकब्बल हादिहि लान” जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जिसका अर्थ होता है “अल्लाह हमें स्वीकार करें, हम सभी शरीक हैं”.

क़ुरबानी की दुआ in English

innee vajjtu kaarani ya lillazee fa ta rasmaavaati val arda haneephanv va ma a na minal musharikeen in na salaatee va nusukee mahya ya va mamaatee lillaahi rabbil aalameen * la sheree ka lahoo va bi zaali ka umiratu va a na minal muslimeen * aaumma la ka va min ka bismillaahi alhu akabar*

Qurbani ke Bad ye Padhe in English

Allahumma taqabbalhu minni kama taqaballta min habibika muhammad sallallahu taala alaihi wasallam

क़ुरबानी की दुआ in Arabic

kurbani-dua-in-arabic

कुर्बानी किस पर वाजिब है?

कुर्बानी हर उस औरत – मर्द पर ज़रूरी है जिसपर ज़कात ज़रूरी और हर वो शख्श पर जो मालदार है इस्लाम में, किसी भी बालिग मुस्लिम व्यक्ति के लिए जो कुछ खरीद सकता हो, उनमें से एक बकरे की कुर्बानी वाजिब होती है। इसे ईद अल अजहा (ईद-उल-अजहा) के मौके पर किया जाता है, जो हज पर जाने वाले लोगों के लिए भी वाजिब होती है।

कुर्बानी के गोश्त को किन-किन लोगों में बांटा जाता है?

कुर्बानी के गोश्त को तीन भागों में बांटा जाता है:

  1. अपने घरवालों में: एक भाग अपने घरवालों के लिए रखा जाता है जो खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
  2. ग़रीबों में: दूसरा भाग ग़रीबों, दरिद्रों और जरूरतमंदों में बांटा जाता है। इससे उनकी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी होती हैं और वे भी ईद के दिन कुछ अच्छा खाना खा सकते हैं।
  3. आपस में बाँटना: तीसरा भाग आपस में बाँटा जाता है। इससे मुस्लिम समुदाय की एकता मजबूत होती है और लोग एक दूसरे से प्यार और मोहब्बत का एहसास करते हैं।

बकरा ईद क्यों मनाया जाता है?

बकरा ईद को इसी वजह से मनाया जाता है क्योंकि इस दिन कुर्बानी के जरिए अल्लाह की राह में अपनी जान देने का परिचय दिया जाता है। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की इस क़ुरबानी को याद करते हुए, मुसलमान इस दिन कुरबानी का आदेश मानते हैं और एक जानवर की कुर्बानी अल्लाह की राह में करते हैं। इस रीती से उन्हें इस दिन पर जानवर की कुर्बानी का मौका मिलता है जो कि अल्लाह की राह में उनकी जान देने का एक प्रतीक होता है।

कुर्बानी का जानवर कैसा होना चाहिए

इस्लाम में कुर्बानी के लिए जानवर के कुछ नियम होते हैं। कुर्बानी के लिए जानवर का स्वस्थ, मोटा, जवान और बिना किसी दिक्कत के होना चाहिए। जानवर को नुस्खा-ए-रब्बानी से नापा जाता है, जिसमें जानवर की लंबाई, चौड़ाई और वज़न को देखा जाता है। यह नुस्खा इस्लामिक शरीअत के अनुसार होता है और जिसमें नुमाइश, उम्र और दांतों की तारीख भी शामिल होती है।

इस्लाम में गाय, भैंस, ऊंट और बकरे को कुर्बानी के लिए चुना जा सकता है।

कुर्बानी के जानवरों का चमरी बीच कर सदका करना जरूरी है चमरी किसी मदरसे या एनजीओ दिया जा सकता है शर्त ये है वो संस्था गरीबो का मददगार है!

उम्मीद करते हैं आपको कुर्बानी की दुआ हिंदी में और कुर्बानी करने का इस्लामिक तारिका आपको पसंद आया होगा।

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